Eknath Shinde Ayodhya Visit: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने नवंबर में अयोध्या जाने का ऐलान किया है. शिंदे का अयोध्या जाना उस सिलसिले की एक और कड़ी है जहां महाराष्ट्र के राजनेता अपने आपको को हिंदुत्ववादी साबित करने के लिये अयोध्या जाते हैं. शिवसेना दो फाड़ है. उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के गुट के बीच खुद को हिंदुत्व का असली झंडाबरदार साबित करने के लिए होड़ लगी है.


एकनाथ शिंदे ने बीते मंगलवार (25 अक्टूबर) को पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में बताया कि वे नवंबर महीने में अयोध्या जाएंगे. महाराष्ट्र का सीएम बनने के बाद उनका ये पहला अयोध्या दौरा होगा. आखिरी बार उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करने से चंद दिनों पहले ही उनके बेटे आदित्य ठाकरे के साथ वे अयोध्या गए थे. चर्चा ये भी है कि इस बार वे अपने सांसद बेटे श्रीकांत और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी साथ ले जाएंगे. हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी होनी बाकी है. शिंदे का अयोध्या दौरा इसलिए अहम है क्योंकि इसे उनकी एक रणनीति के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है.


असली हिंदुत्ववादी कौन है? 
जून में बगावत होने के बाद शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और शिंदे गुट में बंट गयी. दोनों ही अपने आपको सच्चा हिंदुत्ववादी साबित करने में जुटे हुए हैं. एकनाथ शिंदे ने ठाकरे से अलग होने के जो कारण गिनाएं उनमें से एक प्रमुख कारण ये बताया कि ठाकरे हिंदुत्व से विमुख हो गए हैं.


साल 2019 में उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी जैसी पार्टियों की मदद से मुख्यमंत्री बनने की खातिर बीजेपी से गठबंधन तोड दिया. हिंदुत्व के मुद्दे पर ही बीजेपी और शिवसेना में बीते 3 दशकों से गठबंधन होता आया था. अब अयोध्या जाकर शिंदे ये संदेश देना चाहते हैं कि उनका गुट ही असली हिंदुत्ववादी शिवसेना है.


बालासाहब ठाकरे का असली वारिस कौन है? 
शिवसेना की छवि एक कट्टर हिंदुत्व वादी पार्टी की रही है. पार्टी के संस्थापक बालासाहब ठाकरे को हिंदू ह्रदय सम्राट कहा जाता था. शिंदे ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि सत्ता की खातिर उद्धव ठाकरे ने बालासाहेब के विचारों से समझौता कर लिया. उद्धव ठाकरे बालासाहेब की संपत्ति के वारिस हो सकते हैं, लेकिन उनके विचारों के वारिस शिंदे अपने आप को बताते हैं. दिलचस्प बात ये है कि 2019 के पहले खुद उद्धव ठाकरे बीजेपी पर हिंदुतव के मुद्दे पर नरम होने का आरोप लगा रहे थे.


बीजेपी को संदेश देने के लिए वे अपने परिवार के साथ अयोध्या भी गए. पार्टी की ओर से बड़ा आयोजन किया गया. उद्धव ठाकरे ने सरयू आरती की और संत-महंतों से मुलाकात की. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उद्धव और उनके बेटे आदित्य अयोध्या गए ताकि कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार में रहते हुए भी उनकी हिंदुत्ववादी छवि बरकरार रहे.


राजनेताओं के अयोध्या जाने के अलावा अयोध्या का जिक्र मुंबई में उनके भाषणों के दौरान भी होता रहता है. इसी साल मई में जब एक भाषण के दौरान बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि 1992 में अयोध्या में बाबरी मसजिद गिराये जाते वक्त वे वहां मौजूद थे तब उद्धव ने उनका मजाक उड़ाते हुए सवाल उठाया और कहा कि तब तो वे बच्चे रहे होंगे.


राज ठाकरे का क्या है प्लान? 
अयोध्या जाने की हसरत एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे की भी है क्योंकि वे भी अब एक हिंदुत्वावदी नेता बन चुके हैं. मराठीवाद की राजनीति करने वाले राज ठाकरे ने साल 2020 की शुरुआत में हिंदुत्व का मुद्दा अपना लिया. अपना चौरंगी झंडा हटाकर भगवा झंडा अपना लिया. एक भाषण में उन्होंने कहा कि पार्टी गठित करते वक्त यही झंडा उनके मन में था और हिंदुत्व उनके डीएनए में है. जिस तरह से बालासाहेब ठाकरे को हिंदू ह्रदय सम्राट कहते थे. राज ठाकरे भी अपने आप को हिंदू जननायक कहलाने लगे. इसी साल अप्रैल-मई में अपनी हिंदुत्ववादी छवि को और मजबूत करने के लिए उन्होंने मस्जिदों पर से लाउडस्पीकर हटाने की मांग की. साथ ही एलान किया कि वो अयोध्या भी जाएंगे.


बीजेपी ने क्यों किया विरोध? 
राज ठाकरे के अयोध्या दौरे पर उस वक्त रोड़ा अटक गया जब कहानी में एंट्री हुई बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह की. उन्होंने कहा कि वे तब तक राज ठाकरे को अयोध्या में कदम नहीं रखने देंगे जब तक कि वो मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हुई हिंसा के लिए माफी नहीं मांगते. राज ठाकरे ने यह कहते हुए दौरा रद्द कर दिया कि उनके लोगों को आपराधिक मामलों में फंसाने की साजिश रची गयी थी.


साल 1989 में 2 सीट जीतने वाली बीजेपी ने अपने पालमपुर अधिवेशन के बाद अयोध्या की रामजन्मभूमि का मुद्दा उठाया तो वो बढ़ते-बढ़ते आज लोकसभा में 303 तक पहुंच गयी, लेकिन अयोध्या को लेकर सियासत करने वाली अब सिर्फ बीजेपी ही नहीं रह गयी. यह ही वजह है कि अयोध्या से 1500 किलोमीटर दूर होने के बावजूद भी मुंबई की राजनीति में अयोध्या का नाम गूंजता है.


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