मुंबई: महाराष्ट्र में कीटनाशकों के छिड़काव से अब तक 34 किसानों की मौत हो चुकी है. ये मौतें राज्य के विदर्भ क्षेत्र में हुई हैं. अकेले यवतमाल जिले में ही 19 किसानों की मौत हो चुकी है. कीटनाशको के इस प्रभाव से करीब अब तक करीब 450 किसान प्रभावित हुए हो चुके हैं. खास बात ये है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस खुद विदर्भ क्षेत्र से आते हैं.


बीटी कपास, सोयाबीन और अरहर जैसी खेती में होती है कीटनाशकों की जरूरत


जिन किसानों की मौत हुई है उनके शरीर में ऑस्टोपोफोरस नाम का जहरीला तत्व पाया गया है. दरअसल विदर्भ क्षेत्र में किसान बीटी कपास, सोयाबीन और अरहर की खेती करते हैं. जुलाई के महीने में ये फसलें बड़ी हो जाती हैं ऐसे में इनमें कीटनाशकों की जरूरत होती है.


पढ़े लिखे न होने के कारण चेतावनी नहीं पढ़ पाते किसान


कीटनाशक बनाने वाली कंपनियां इनसे खुद के बचाव के बारे में पैकेट पर छापती हैं, लेकिन कुछ किसान पढ़े लिखे न होने के कारण इसे नहीं पढ़ पाते हैं और वह इसके दुष्प्रभाव का शिकार हो जाते हैं. बड़ी बात यह है कि सरकार की ओर से इन किसानों को कीटनाशकों के प्रभाव से बचने की कोई ट्रेनिंग भी नहीं दी गई है.



चीनी पंपो पर सरकार की रोक


सरकार ने खबर के सामने आने के बाद उन चीनी पंपो पर अब रोक लगा दी है, जिनका प्रयोग अब तक कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किया जाता था. ऐसा माना जाता है कि इन पंपो से छिड़काव करते वक्त धुएं का गुबार बन जाता है, जो नाक से अंदर जाकर शरीर को नुकसान पंहुचाता है.


हिटलर ने यहूदीयों के नरसंहार के दौरान किया था आर्गेनोफॉस्फोरस का इस्तेमाल


सालों से किसानों के लिए संघर्ष करने वाले एक्टिवस्ट किशोर तिवारी बताते हैं कि इन कीटनाशकों में आर्गेनोफॉस्फोरस नाम का जहरीला पदार्थ मिलाया जाता है और ये वही केमिकल है, जिसका प्रयोग हिटलर ने यहूदीयों के नरसंहार के दौरान किया था. किशोर तिवारी के मुताबिक, ये मुद्दा रासायनिक खेती से जुडा हुआ है, जिसे खत्म करना जरूरी है.



34 किसानों की मौत के बाद अब जाकर महाराष्ट्र सरकार जागी है और एसआईटी गठित करके जांच करने का आदेश दिया गया है. हालांकि किसानों को  शरीर को कीटनाशकों से बचाने के लिए कपड़े बांटे जा रहे हैं. फिलहाल कीटनाशक छिड़काव का सीजन खत्म हो चुका है.


किसानों को कब दी जाएगी हानिकारक कीटनाशकों से बचाव के लिए ट्रेनिंग


सरकार ने कीटनाशक सप्लाई करने वाले कृषि केंद्रों पर भी कारवाई की है, लेकिन सवाल यहां पर यही खड़ा होता है कि जब हमारी पूरी कृषि व्यवस्था ही रासायनिक खेती पर आधारित है तो महज कुछ कृषि केंद्रो पर कारवाई करके क्या हासिल होगा? साथ ही किसानों को हानिकारक कीटनाशकों से बचाव के लिए ट्रेनिंग कब दी जाएगी ताकि वो असमय मौत से बच सकें.