Lok Sabha Election 2024: चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलगु देशम पार्टी (TDP) की एनडीए में वापसी की बड़ी जोर-शोर से अटकलें लगीं, लेकिन ऐसा लगता है कि इसकी संभावना अब कमजोर होती जा रही है. इसकी वजह टीडीपी की धुर विरोधी वाईएसएर-कांग्रेस पार्टी (YSRCP) से बीजेपी का प्रेम है, जिसे वो छोड़ने को तैयार नहीं है.


बीते जून महीने में चंद्रबाबू नायडू की दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हुई तो इसे एक बड़ी राजनीतिक हलचल के रूप में देखा गया था. अटकलें लगाई जाने लगीं कि एनडीए में जल्द ही पुराने साथी की वापसी हो सकती है, लेकिन उसके बाद से मामला ठंडे बस्ते में चला गया.


दिल्ली में हैं नायडू, लेकिन बीजेपी नेताओं से मुलाकात नहीं


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चंद्रबाबू नायडू इस समय फिर दिल्ली में हैं, लेकिन इस बार उनके किसी भी बीजेपी नेता से मिलने की संभावना नहीं है. सोमवार को नायडू ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार से मुलाकात की थी और आंध्र प्रदेश की मतदाता सूची में कथित तौर पर बड़ी संख्या में फर्जी वोटर्स को शामिल किए जाने की शिकायत की थी.


नायडू अभी बीजेपी नेतृत्व से सकारात्मक प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है बीजेपी ने राजनीतिक हालात को देखते हुए अपना मूड बना लिया है. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि बीजेपी राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए वाईएसआरसीपी के साथ अपने रिश्तों को बनाए रखने चाहती है. 


बीजेपी के वाईएसआरसीपी प्रेम की क्या है वजह?


हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि नायडू ने साफ कर दिया है कि वे एनडीए से तभी जुड़ेंगे जब बीजेपी अपने रिश्ते वाईएसआरसीपी से तोड़ ले. आखिर जगन मोहन रेड्डी की पार्टी में ऐसा क्या है कि बीजेपी उनके लिए अपने पुराने सहयोगी की भी उपेक्षा करने को तैयार है? इसकी वजह आंध्र प्रदेश का चुनावी गणित है.


दरअसल, 25 लोकसभा सीटों वाले आंध्र प्रदेश में बीजेपी जगन मोहन की वाईएसआरसीपी को मजबूत ताकत के रूप में देखती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में वाईएसआरसीपी ने आंध्र प्रदेश की 22 सीटों पर कब्जा जमाया था और विधानसभा चुनावों में भी एकतरफा जीत हासिल की थी.


इंडियन एक्सप्रेस ने बीजेपी नेताओं के हवाले से कहा है कि वाईएसआरसीपी इस बार भी चुनावी तौर पर आरामदायक स्थिति में दिख रही है, जबकि टीडीपी पिछले साढ़े चार साल में सरकार विरोधी वोटों को मजबूत करने में विफल रही है.


चुनावी समीकरण बता रहे कहानी


आंध्र प्रदेश में बीते दो विधानसभा चुनावों के आंकड़ों से राज्य के राजनीतिक समीकरण को समझने में आसानी होगी. 2014 के विधानसभा चुनावों में जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी को 70 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी, जबकि नायडू की टीडीपी को 116 सीटें मिली थीं. इसी चुनाव में वाईएसआरपी को 27.88 प्रतिशत वोट मिले जबकि टीडीपी को 32.53 प्रतिशत वोट मिले.


5 साल बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में वाईएसआरसीपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और 151 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं, चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को महज 23 सीटों से संतोष करना पड़ा. पिछले चुनाव में क्रमशः 21 और 9 सीट पाने वाली कांग्रेस और बीजेपी का पत्ता साफ हो गया. वोट प्रतिशत में भी वाईएसआरसीपी को बड़ा फायदा हुआ और ये बढ़कर 49.95 प्रतिशत हो गया. टीडीपी के भी वोट बढ़े और उसे 39.17 फीसदी वोट मिले लेकिन ये सीटों में नहीं बदले.


दक्षिण में कांग्रेस को रोकना बीजेपी का लक्ष्य


ये नतीजे ही बीजेपी को राज्य में टीडीपी के लिए अपने प्रस्तावों पर पुनर्विचार के लिए मजबूर कर रहे हैं. बीजेपी की प्राथमिकता दक्षिण में कांग्रेस को रोकना है. लोकसभा चुनाव में पार्टी की योजना कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को कम से कम सीटों पर रोकने की है. लेकिन उसकी मुश्किल ये है कि आंध्र प्रदेश में उसकी मौजूदगी सीमित है, ऐसे में जगन की चुनावी आरामदायक स्थिति बीजेपी को उनकी तरफ खींच रही है.


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