नई दिल्ली: 11 जनवरी इतिहस के पन्नों में दर्ज एक दर्दनुमा दिन है. यह दिन इसलिए ग़म से भरा है क्योंकि इसी दिन भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री ने दुनिया को अलविदा कहा था. उन्हें सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर जानना बेईमानी होगी. दरअसल वे एक ऐसी हस्ती थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई. वह देश के किसानों को जहां देश का अन्नदाता मानते थे, वहीं देश के सीमा प्रहरियों के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था जिसके चलते उन्होंने 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया.


उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुग़लसराय, उत्तर प्रदेश में शारदा प्रसाद श्रीवास्तव'के यहां हुआ था. उनके पिता पेशे से शिक्षक थे. लाल बहादुर शास्‍त्री घर में सबसे छोट थे इसलिए उनको बहुत प्यार मिलता था. उन्हें 'नन्हें' कहकर बुलाया जाता था. छोटी उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद उनकी मां बच्चों के साथ मिर्जापुर अपने पिता के घर आ गई. ननिहाल में रहते हुए लालबहादुर शास्‍त्री ने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की. उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई. काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही प्रबुद्ध बालक ने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया. इसके पश्चात् 'शास्त्री' शब्द 'लालबहादुर' के नाम का पर्याय ही बन गया.


देश के लिए परिवार से कहा एक दिन का 'उपवास' रखें


सीधे और सरल स्वभाव वाले लाल बहादुर शास्‍त्री ने जवाहरलाल नेहरू के मृत्यु के बाद 9 जून 1964 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री के तौर पर पद संभाली. उनकी राह बड़ी मुश्किल थी क्योंकि उनके प्रधानमंत्री बनने के समय देश गंभीर खाद्य संकट से जूझ़ रहा था.


उन्होंने अपने नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों के माध्यम से समाज के लिए उच्च मानकों की स्थापना की. उनके लिए राष्ट्र और लोग हमेशा उनके परिवार से आगे थे. 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भोजन की भारी कमी थी. भारत को युद्ध बंद नहीं करने पर अमेरिका ने गेहूं की आपूर्ति में कटौती करने की धमकी दी. उस समय भारत गेहूं आयात करता था. अमेरिका की चेतावनी से दुखी होकर शास्त्री जी ने एक नया तरीका अपनाया. उन्होंने अपने परिवार से एक दिन के लिए रात का खाना छोड़ने के लिए कहा क्योंकि वह जानना चाहते थे कि देशवासी एक दिन में एक बार भोजन कैसे करेंगे. अगले दिन आकाशवाणी पर देशवासियों को संबोधित करते हुए, उन्होंने लोगों को सप्ताह में कम से कम एक बार बिना भोजन के रहने को कहा.


दरअसल इस बात का खुलासा उनके बेटे अनिल शात्री ने एक इंटरव्यू में किया था. उन्होंने बताया कि शास्ती जी ने कहा '' मैं देखना चाहता हूं कि मेरे बच्चे भूखे रह सकते हैं कि नहीं.'' अनिल शास्‍त्री ने बताया था कि वह उस वक्त 13 साल के थे और वह अपने दो छोटे भाइयों के साथ उस दिन भूखे रहे थे. जब लालबादुर शास्‍त्री ने देखा कि उनके बच्चे भूखे रह सकते हैं तो उन्होंने देश के लोगों से हफ्ते में एक दिन का खाना छोड़ने की अपील की.


सभी भोजनालयों ने भी अगले कुछ हफ्तों तक उनके शब्दों का पालन किया. लालबहादुर शास्‍त्री आत्मसम्मान से भरे हुए व्यक्ति थे इसलिए उन्होंने अमेरिका के सामने झुकने से इनकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने 'जय जवान, जय किसान' का प्रसिद्ध नारा दिया. उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ाने और इसे उद्योगों की तरह प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा. यही कारण है कि उन्होंने श्वेत क्रांति और हरित क्रांति को बढ़ावा दिया. क्रमशः भारत के दूध और खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए देशव्यापी आंदोलन ने  देश की अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव लाया. यह आत्मनिर्भर राष्ट्र होने की दिशा में एक कदम था.


मौत आज भी बनी हुई है रहस्य


लाल बहादुर शास्‍त्री की मौत पर आजतक सवाल उठता है. उनकी मौत अब भी रहस्य बनी हुई है. दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौते के बाद उनकी रहस्यमय परिस्थियों में मौत हो गई थी. सोवियत संघ के ताशकंद में 10 जनवरी, 1966 में भारत और पाकिस्‍तान ने एक समझौते पर दस्‍तखत किए. उस रात ताशकंद गए भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया.


उनकी मौत पर उनके कई परिजनों ने सवाल उठाए. उनके बेटे अनिल शास्त्री के मुताबिक़ लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद उनका पूरा चेहरा नीला हो गया था, उनके मुंह पर सफ़ेद धब्बे पाए गए थे. उन्‍होंने कहा था कि शास्‍त्री के पास हमेशा एक डायरी रहती थी, लेकिन वह डायरी नहीं मिली. इसके अलावा उनके पास हरदम एक थर्मस रहता था, वह भी गायब हो गया था. इसके अलावा लालबहादुर शास्त्री के शव का पोस्टमार्टम नहीं किया गया था. इसलिए यह कहा जाता है कि उनकी मौत संदेहजनक स्थितियों में हुई.


दरअसल हाल में ही उनकी मौत को लेकर एक आरटीआई कार्यकर्ता ने आरटीआई डालकर सवाल पूछा था. इसमें कई खुलासे हुए. RTI के जवाब में बताया गया कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री मरने से 30 मिनट पहले तक बिलकुल ठीक थे. 15 से 20 मिनट में तबियत खराब हुई और उनकी मौत हो गई. इसमें कहा गया है कि शास्त्री की मौत के बाद उनके डेड बॉडी का पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया था. आरटीआई से मिले जवाब के मुताबिक, शास्त्री 10 जनवरी 1966 की रात 12.30 बजे तक बिलकुल ठीक थे. इसके बाद अचानक उनकी तबियत खराब हुई, जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने डॉक्टर को बुलाया. डॉक्टर आरएन चग ने पाया कि शास्त्री की सांसें तेज चल रही थीं और वो अपने बेड पर छाती को पकड़कर बैठे थे. इसके बाद डॉक्टर ने इंट्रा मस्कूलर इंजेक्शन दिया. इंजेक्शन देने के तीन मिनट के बाद शास्त्री का शरीर शांत होने लगा. सांस की रफ्तार धीमी पड़ गई. इसके बाद सोवियत डॉक्टर को बुलाया गया. इससे पहले कि सोवियत डॉक्टर इलाज शुरू करते रात 1.32 बजे शास्त्री की मौत हो गई.


कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों के ध्वजवाहक रहे


उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की सरकार में विभिन्न विभागों का संचालन किया और कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों के ध्वजवाहक रहे. परिवहन मंत्री के रूप में, उन्होंने सार्वजनिक परिवहन में महिला ड्राइवरों और कंडक्टरों को शामिल करने का स्वागत किया. वह भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज के बजाय जेट वाटर के इस्तेमाल की शुरुआत करने वाले थे. उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया, लेकिन रहस्य अभी भी उनकी मृत्यु पर ही है. 2004 में उनकी जन्मशताब्दी पर, RBI ने 100 रुपये का सिक्का जारी किया, जिस पर उनका चित्र है.