नई दिल्ली: गधों पर हो रही सियासत में अब आम आदमी पार्टी नेता और कवि डॉ. कुमार विश्वास भी कूद पड़े हैं. उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है जिसमें वे कह रहे हैं, ''ये फाल्गुन का महीना है और लोकतंत्र का महापर्व चुनाव चल रहा है लेकिन वैशाख नंदन गधा इस समय अनायास ही प्रसंग में है, चर्चा में है. मुझे हिंदी कवि सम्मेलनों के आचार्य हास्य कवि स्व. ओम प्रकाश 'आदित्य' की एक लोकप्रिय कविता याद आ गई.''

विश्वास आगे कह रहे हैं, 'उन्होंने सैकड़ों बार हम सब के सामने इसका वाचन किया. और हमने बड़े आनंद के साथ इस कविता का पाठ सुना. लेकिन कविता आज इतनी प्रासंगिक होगी बड़ा आश्चर्य है. आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूं...' विश्वास ने 2 मिनट 31 सेकेंड के इस वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल पर भी शेयर किया है.

कविता की लाइनें इस प्रकार है...(सबसे अंत में देखें पूरा वीडियो)-

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं.

गधे हंस रहे, आदमी रो रहा है हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है.

जवानी का आलम गधों के लिये है ये रसिया, ये बालम गधों के लिये है.

ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिये है ये संसार सालम गधों के लिये है.

पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के तू विहस्की के मटके पै मटके पै मटके

मैं दुनियां को अब भूलना चाहता हूं गधों की तरह झूमना चाहता हूं.

घोडों को मिलती नहीं घास देखो गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो

यहां आदमी की कहां कब बनी है ये दुनियां गधों के लिये ही बनी है.

जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है.

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है जो माइक पे चीखे वो असली गधा है.

मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं नशे की पिनक में कहां बह गया हूं.

मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था.

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं.

घोडों को मिलती नहीं घास देखो गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो.

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है जो माइक पे चीखे वो असली गधा है.

यहां देखें पूरा वीडियो-