आजादी के 70वीं वर्षगांठ पर एबीपी न्यूज़ आपको आजादी से जुड़े कुछ किस्से और उन जगहों के बारे में बताएगा जो भारत की आजादी के महान आंदोलन की गवाह रही हैं. इसी कड़ी में आज जलियांवाला बाग की कहानी बताने जा रहे हैं जहां 13 अप्रैल 1919 के दिन 10 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चली थीं.

13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में मौजूद जलियांवाला बाग में जो नरसंहार अंग्रेज़ों ने किया था उसकी निशानियां आज भी वहां मौजूद हैं. जलियांवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के ये निशान बताते हैं कि जनरल डायर कितना बड़ा हैवान था.

इतिहासकार प्रो. एस एन जोशी के मुताबिक जनरल डायर इस मन से आया था कि मैंने इन्हें सबक सिखाना है. इसलिए उसने पूरी ताकत के साथ एक जलियांवाला बाग का जो संकरा रास्ता था अंदर जाने का उससे अंदर वो गया और अंदर जाकर उसे पता था कि इस बाग से बाहर जाने का और कोई रास्ता नहीं है.

क्यों हुआ था जलियांवाला बाग कांड ? रोलेट एक्ट के खिलाफ जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गयी थी. अंग्रेज़ी हुकूमत ने शहर में कर्फ्यू लगा रखा था लेकिन सभा में करीब 5 हजार लोग शामिल होने पहुंच चुके थे. इसमें बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी थीं. ब्रिटिश सरकार को लगा कि कहीं 1857 के सैनिक विद्रोह जैसी स्थिति ना हो जाए इसलिए इसे रोकने के लिए जनरल डायर 90 सैनिकों लेकर यहां पहुंच गया और बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलवा दीं.

बिना किसी चेतावनी के चलवायीं गोलियां इतिहासकार प्रो. एस एन जोशी के मुताबिक गोली चलाने से पहले एक चेतावनी देनी पड़ती है लेकिन बिना किसी चेतावनी के गोली चलनी शुरू हो गयीं. इसके बाद गोली तब तक चलती रही जब तक उनके पास मौजूद गोलियां खत्म नहीं हो गयीं.

...और जब कुआं लाशों से भर गया 10 मिनट में करीब 1650 राउंड गोलियां चलीं. मैदान से बाहर जाने का एक ही रास्ता था. जान बचाने के लिए लोग वहां मौजूद इकलौते कुएं में कूद गए, देखते ही देखते कुआं लाशों से भर गया. आजादी की लड़ाई में जलियांवाला बाग में हुए इस हत्याकांड ने एक निर्णायक भूमिका निभाई.

गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर जिनका राजनीति से सीधा कोई ताल्लुक नहीं था. उनको अंग्रेज सरकार ने सर की उपाधि दी थी. जलियांवालाबाग कांड के बाद उन्होंने गुस्से में आकर अपनी सर की उपाधि छोड़ दी.

आज के हालात बेहद खराब आज जलियांवालाबाग की हालत शहीदों के सम्मान को ठेस पहुंचाती है. बाग में कई जगहों पर कूड़ा कचरा दिखता है, शहीदों की याद से जुड़ी चीज़ों की रख रखाव में भी कोताही बरती जा रही है.

हर साल लाखों लोग जलियांवाला बाग में आते हैं अपने उस इतिहास को जानने जो याद दिलाता है कि आज़ाद हवा में सांस लेने के लिए देश ने कितनी बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी हैं. आज हालात ऐसे हैं कि अगर ध्यान नहीं दिया गया तो शायद हमारी आने वाली पीढ़ियां जान भी नहीं पाएंगी कि जलियांवाला बाग क्यों देश के लिए इतना अहम है?