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Spy Balloon: क्या होता है 'जासूसी गुब्बारा'? विश्वयुद्ध में हो चुका है इस्तेमाल, जानें इसकी खासियतें

Surveillance Balloons: विशेषज्ञों का कहना है कि जासूसी गुब्बारे में हीलियम गैस भरी होती है और ये कई बार सैटेलाइट से भी ज्यादा बेहतर साबित होता है.

Spy Balloon History: जासूसी गुब्बारे को लेकर अमेरिका (America) और चीन (China) में तकरार बढ़ गई है. अमेरिकी सेना ने अटलांटिक महासागर में चीन के एक संदिग्ध जासूसी गुब्बारे (Spy Ballon) को मार गिराया है. इसके मलबे से सभी उपकरण बरामद करने का अभियान शुरू किया है. वहीं चीन ने रविवार (5 फरवरी) को इस कार्रवाई पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका को गंभीर अंजाम भुगतने की धमकी दी है. दोनों देशों में जारी इस गतिरोध के बीच जासूसी गुब्बारे को लेकर काफी चर्चा हो रही है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि जासूसी गुब्बारा क्या है और इसका इस्तेमाल क्यों किया जाता है? 

विशेषज्ञों का कहना है कि सर्विलांस बैलून या जासूसी गुब्बारों का जासूसी में एक लंबा इतिहास रहा है. सैटेलाइट के जमाने में भी इन गुब्बारों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके जरिए क्लोज-रेंज यानी पास की निगरानी की जाती है. कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विज्ञान के प्रोफेसर इयान बॉयड ने द कन्वर्सेशन न्यूज साइट को बताया कि ये गुब्बारे बेहद हल्के होते हैं और इनमें हीलियम गैस भरी जाती है. 

जासूसी गुब्बारे की खासियतें

उन्होंने कहा कि जासूसी के लिए इसमें एडवांस कैमरे लगाए जाते हैं. इन्हें जमीन से लॉन्च करते हैं. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये किसी क्षेत्र का लंबे समय तक अध्ययन कर सकता है. जमीन से इनकी निगरानी करना बेहद मुश्किल होता है. ये जमीन से काफी ऊंचाई पर उड़ सकते हैं इसलिए इनका इस्तेमाल मौसम से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि जासूसी के मामले में ये गुब्बारे सैटेलाइट्स से भी ज्यादा बेहतर साबित होते हैं. क्योंकि ये सैटेलाइट के मुकाबले ज्यादा आसानी से और ज्यादा देर तक किसी इलाके को स्कैन कर सकते हैं. 

ये गुब्बारे ज्यादा साफ फोटो ले सकते हैं

उन्होंने बताया कि सैटेलाइट के जरिए ओवरहेड जासूसी की जाती है. जबकि गुब्बारे लगभग उतनी ही ऊंचाई पर उड़ते हैं जितनी पर फ्लाइट उड़ती हैं. आमतौर पर ये गुब्बारे लो आर्बिट वाले सैटेलाइट की तुलना में साफ फोटो ले सकते हैं. ऐसा ज्यादातर ऐसे सैटेलाइट की गति के कारण होता है, जो 90 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेते हैं. एक अन्य प्रकार की सैटेलाइट जो पृथ्वी के साथ सिंक में घूमने में सक्षम है, वो एक स्थान की लगातार कई फोटो ले सकती है. हालांकि ऐसी सैटेलाइट ग्रह से दूर परिक्रमा करती हैं इसलिए आम तौर पर धुंधली फोटो आती है. 

वाशिंगटन, डीसी में नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड डेरोचेस के अनुसार, सर्विलांस गुब्बारे इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल को इकट्ठा करने और संचार को बाधित करने में भी सक्षम हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि चीनी गुब्बारे का उपयोग ये जानने के लिए किया गया कि अमेरिका में किस तरह के ट्रैक सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है. 

अमेरिकी अधिकारियों ने क्या कहा?

अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि चीनी गुब्बारा तीन स्कूल बसों के आकार के जितना बड़ा था और इसने 28 जनवरी को अलास्का में अलेउतियन द्वीप समूह के उत्तर में अमेरिकी वायु रक्षा क्षेत्र में प्रवेश किया. अमेरिकी अधिकारियों ने गुब्बारे पर तकनीक के बारे में अधिक जानकारी नहीं दी है. हालांकि उन्होंने कहा है कि यह निगरानी गुब्बारा था. गुब्बारे में मोटर और प्रोपेलर होने का आंकलन किया गया था, जिससे इसे संचालित किया जा सके. एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने कहा कि हमें लगता है कि यह संवेदनशील सैन्य स्थलों की निगरानी करना चाहता था. 

जासूसी गुब्बारे का इतिहास

1800 के दशक में निगरानी गुब्बारे उपयोग में आए. फ्रांस ने 1859 में फ्रेंको-ऑस्ट्रियाई युद्ध में निगरानी के लिए गुब्बारों का इस्तेमाल किया. 1861 से 1865 के बीच अमेरिकी नागरिक युद्ध के दौरान जल्द ही गुब्बारों का फिर से इस्तेमाल किया गया. प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में जासूसी गुब्बारे अधिक आम हो गए. जापानी सेना ने अमेरिकी क्षेत्र में आग लगाने वाले बमों के लिए गुब्बारों का इस्तेमाल किया. कोई सैन्य लक्ष्य क्षतिग्रस्त नहीं हुआ, लेकिन ओरेगन के जंगल में एक गुब्बारे के दुर्घटनाग्रस्त होने से कई नागरिक मारे गए थे.

द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के ठीक बाद, अमेरिकी सेना ने ज्यादा ऊंचाई वाले जासूसी गुब्बारों (Spy Balloon) के उपयोग की खोज शुरू की. सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, 1950 के दशक में सोवियत ब्लॉक क्षेत्र में फोटोग्राफिक गुब्बारे उड़ाए गए थे. 

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