नई दिल्लीः दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल फैक्टर सभी समीकरणों पर भारी रहा. इन्हीं में से एक है पूर्वांचली समीकरण. केजरीवाल के सामने दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्वांचली चेहरा मनोज तिवारी पूर्वांचली वोट खींचने में नाकाम रहे वहीं कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन में लड़ रही बिहार की तीन पार्टियों का हाथ भी खाली रहा. जहां बीजेपी ने दो सीटें जेडीयू और एक सीट एलजेपी को दी थी वहीं कांग्रेस ने आरजेडी के लिए चार सीटें छोड़ी थी. लेकिन लगभग सभी पूर्वांचली सीटों पर आप का परचम लहराया. सबसे बुरा हाल आरजेडी का रहा जिसके चारों उम्मीदवारों की जमानत तो जब्त हुई ही, तीन को नोटा से भी कम वोट मिले.

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कुछ पार्टियों को मिले नोटा से भी कम वोट बिहार की पार्टियां पहले भी दिल्ली का चुनाव लड़ती रही हैं लेकिन इस बार इनका राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन था. बीजेपी के साथ गठबंधन में लड़ कर जेडीयू बुराड़ी, संगम विहार में और एलजेपी सीमापुरी में दूसरे स्थान पर रही. कांग्रेस खुद तो ज्यादातर सीटों पर तीसरे स्थान पर रही लेकिन उसकी सहयोगी आरजेडी उत्तम नगर, किराड़ी में पांचवे और पालम, बुराड़ी में चौथे स्थान से आगे नहीं बढ़ पाई. उत्तम नगर, पालम, किराड़ी में आरजेडी उम्मीदवारों को नोटा से भी कम भी वोट मिले.

आरजेडी के लिए तेजस्वी तो जेडीयू के लिए नीतीश कुमार ने किया प्रचार आरजेडी के सभी उम्मीदवारों के लिए तेजस्वी यादव ने वोट मांगे थे जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी दिल्ली में प्रचार किया. बुराड़ी में नीतीश कुमार और अमित शाह की संयुक्त रैली भी हुई. कांग्रेस ने पूर्वांचली चेहरे के तौर पर कीर्ति आजाद को कैम्पेन कमिटी के प्रमुख बनाया था. लेकिन इन सबके बावजूद पूर्वांचलियों की पहली पसंद केजरीवाल ही बने.

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आरजेडी ने कहा-हम विकल्प बने रहेंगे नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए आरजेडी के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि हम एक विकल्प बने रहेंगे. हर चुनाव अलग होता है. ये चुनाव बेहद ध्रुवीकरण के माहौल में हुआ ऐसे में नतीजों से हैरानी नहीं है. वहीं कांग्रेस नेता अनिल भारद्वाज ने कहा कि हमने बड़े लक्ष्य के मद्देनजर गठबंधन किया था, हम नतीजों का विश्लेषण करेंगे.

आपको बता दें कि दिल्ली की 70 में से करीब 15 सीटें पूर्वांचल बहुल हैं जबकि आधी से ज्यादा सीटों पर पूर्वांचली वोटर जीत-हार तय करते हैं. विधानसभा चुनावों में इस वोट बैंक पर आम आदमी पार्टी की मजबूत पकड़ इस बार भी बरकरार रही.