कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक सिनेमा (रेगुलेशन) (अमेंडमेंट) नियम 2025 पर रोक लगा दी है, जिसके तहत फिल्म के टिकट की कीमत 200 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने अगले आदेश तक अंतरिम रोक लगा दी है. मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, फिल्म प्रोड्यूसर्स और पीवीआर आईनोक्स शेयरहोल्डर ने कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर नियम में किए गए बदलाव का विरोध किया है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस रवि होसमानी कर रहे थे.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सभी थिएटर के लिए 200 रुपये टिकट की कीमत निर्धारित करना सही नहीं है, क्योंकि इनमें मल्टीप्लेक्स का खर्च सिंगल स्क्रीन थिएटर की तुलना में ज्यादा आता है. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सिंगल स्क्रीन थिएटर और मल्टीप्लेक्स की टेक्नोलॉजी, इनवेस्टमेंट, लोकेशन फॉर्मेट (IMAX, 4DX) ध्यान में रखे बगैर ऐसे नियम बनाना मनमाना तरीका लगता है.
याचिकाकर्ताओं को इस बात पर भी आपत्ति है कि सेलेक्टिवली सिनेमा के लिए यह नियम बनाया गया है. उनका कहना है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, सैटेलाइट टीवी और अन्य एंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म इससे बाहर हैं. उन्होंने कहा कि नियमों से मनमाने तरीके से छूट दी गई है. नियम में 75 सीट या उससे कम सीट वाले मल्टी स्क्रीन प्रीमियम सिनेमा को इससे छूट दी गई है, लेकिन प्रीमियम की परिभाषा नहीं बताई गई.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ये नियम संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत थिएटर मालिकों के बिजनेस करने के अधिकारों का उल्लंघन करता है. मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से सीनियर एडवोकेट उदया होला ने पक्ष रखा और कहा कि टिकट के लिए 200 रुपये की कैप निर्धारित करना मनमाना है.
वकील ने कहा कि अगर ग्राहक लग्जरी सिनेमा में फिल्म देखने के लिए ज्यादा खर्च करना चाहते हैं तो उनको चॉइस मिलनी चाहिए. फिल्म एग्जिबिटर्स को यह स्वतंत्रता मिलनी चाहिए कि वह ऐसी लग्जरी सर्विस देने के लिए टिकट का प्राइस निर्धारित कर सकें.
उन्होंने कहा कि टिकट की कीमतों पर सीमा निर्धारित करने वाले नियम का कंज्यूमर प्रोटेक्शन से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह व्यापार पर एक अनुचित प्रतिबंध है. उन्होंने बताया कि सात साल पहले एक और राज्य में भी इसी तरह टिकट के लिए कैप निर्धारित की गई, लेकिन मामला कोर्ट में जाने के बाद यह नियम हटाना पड़ा. एक और याचिकाकर्ता होमबेल फिल्म्स के लिए पेश सीनियर एडवोकेट ध्यान चिन्नप्पा ने कहा कि टिकट की कीमत निर्धारित करने का राज्य सरकार को अधिकार नहीं है, ये फिल्म एग्जिबिटर, थिएटर और ग्राहकों के बीच का मसला है.