पाकिस्तान ने जब कारगिल की चोटियों पर कब्जा जमाया तो भारतीय सेना को दुश्मन से भिड़ना पड़ा. मई के आखिरी सप्ताह तक भारतीय सेना को भारी नुकसान हो चुका था. सैनिकों का मनोबल डगमगाने लगा था. ऐसे में भारतीय वायुसेना को युद्ध में शामिल करने का निर्णय लिया गया और यहीं से शुरू हुई भारतीय इतिहास की एक निर्णायक मोड़ वाली कहानी.

Continues below advertisement

25 जून की सुबह, दो मिराज-2000 फाइटर जेट टाइगर हिल की दिशा में निकले. यह ऑपरेशन किसी सामान्य बमबारी का हिस्सा नहीं था. एक जेट से ऐसा बम गिराया गया जिसे वायुसेना ने खुद मॉडिफाई किया था – जुगाड़ बम. इसे पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था.

पाकिस्तानी बंकर पर जाकर गिराबम 7 किलोमीटर की दूरी से दागा गया और सीधा टाइगर हिल पर स्थित पाकिस्तानी बंकर पर जाकर गिरा. धमाका इतना जबरदस्त था कि पूरे बंकर को तहस-नहस कर दिया. केवल एक पाकिस्तानी सैनिक जिंदा बचा. इस अचूक हमले के बाद भारत को युद्ध की सबसे ऊंची और रणनीतिक चोटी वापस मिल गई. इस मिशन की खास बात यह थी कि तत्कालीन एयर चीफ मार्शल ए.वाई. टिपनिस स्वयं मिशन में एक मिराज जेट में सवार थे. उन्होंने अपनी आंखों से दुश्मन के कमांड एंड कंट्रोल सेंटर को ध्वस्त होते देखा.

Continues below advertisement

मंथो धालो पर हमला, सप्लाई चेन खत्म

इसी तरह का एक और जानलेवा हमला भारतीय वायुसेना ने कारगिल के पूर्वी सेक्टर में स्थित मंथो धालो पर किया. यह स्थान पाकिस्तानी सेना का लॉजिस्टिक और सप्लाई डंप था. इस हमले में चार मिराज-2000 जेट निकले और एक ही अटैक में 250 किलो के छह बम दागे गए. एक ही हमले में लगभग 300 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और उनकी सप्लाई चेन पूरी तरह से ध्वस्त हो गई. इस हमले से पाकिस्तान के ऑपरेशन की रीढ़ टूट गई और भारतीय सेना को कारगिल में निर्णायक बढ़त मिली.

ये भी पढ़ें: IAF के निशाने पर थे नवाज शरीफ-परवेज मुशर्रफ, अगर जगुआर ने दाग दी होती मिसाइल तो...