नई दिल्ली: केरल के सबरीमाला में विराजमान भगवान अयप्पा मंदिर में हर उम्र की महिलाएं जा सकती हैं. आज महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच में चार जजों ने अलग-अलग फैसला पढ़ा. सभी के फैसले का निष्कर्ष एक ही था, इसलिए इसे बहुमत का फैसला कहा जा सकता है. लेकिन बेंच की इकलौती महिला जज इंदु बहुमत के फैसले से असहमत थी. उन्होंने कहा है कि धर्म का पालन किस तरह से हो, ये उसके अनुयायियों पर छोड़ा जाए. सुप्रीम कोर्ट ये तय नहीं कर सकता.

इंदु मल्होत्रा ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा है?

इंदु मल्होत्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘’इस फैसले का व्यापक असर होगा. धर्म का पालन किस तरह से हो, ये उसके अनुयायियों पर छोड़ा जाए. कोर्ट तय नहीं कर सकता. लिहाज़ा मेरी नज़र में ये मांग विचारयोग्य नहीं है, क्योंकि मौलिक अधिकारों के साथ ही धार्मिक मान्यताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता.’’

सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हर उम्र की महिलाओं के लिए खोले दरवाजे

इन्दु मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाये रखने के लिये गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए. जज इंदु मल्होत्रा का मानना था कि ‘सती’ जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं.

इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा- इंदु मल्होत्रा

जज इंदु मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है. इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा.

कौन हैं इंदु मल्होत्रा? इंदु मल्होत्रा को वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था. सुप्रीम कोर्ट के 68 साल के इतिहास में वो इसकी जज बनने वाली सातवीं महिला हैं. उनसे पहले सिर्फ जस्टिस फातिमा बीवी, सुजाता मनोहर, रुमा पाल, ज्ञान सुधा मिश्रा, रंजना देसाई और आर भानुमति सुप्रीम कोर्ट की जज बनी हैं. इस समय सुप्रीम कोर्ट के 24 जजों में सिर्फ एक महिला जस्टिस आर भानुमति हैं. यानी इंदु मल्होत्रा कोर्ट की दूसरी महिला जज हैं. उनके नाम की सिफारिश 11 जनवरी को भेजी गई थी. क्या था मामला? केरल के सबरीमाला मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी माना जाता है. साथ ही, सबरीमाला की यात्रा से पहले 41 दिन तक कठोर व्रत का नियम है. मासिक धर्म के चलते युवा महिलाएं लगातार 41 दिन का व्रत नहीं कर सकती हैं. इसलिए, 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में आने की इजाज़त नहीं थी. वीडियो देखें- यह भी पढ़ें- भीमा कोरेगांव: अमित शाह का राहुल पर वार, बोले- कांग्रेस भारत के टुकड़े गैंग का समर्थन करती है स्मृति ईरानी बोलीं- मौसमी शिवभक्त हैं राहुल गांधी, सरदार पटेल का अपमान किया सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री का चौतरफा स्वागत, मंदिर प्रशासन नाराज 20 साल तक शरद पवार के नजदीकी रहे तारिक अनवर ने NCP छोड़ी, दोबारा थाम सकते हैं कांग्रेस का हाथ