नई दिल्ली: कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सी एस कर्नन आज सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश हुए. सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की बेंच जस्टिस कर्नन के खिलाफ अदालत की अवमानना मामले में सुनवाई कर रही है. ये कार्रवाई जस्टिस कर्नन की पीएम को भेजी चिट्ठी के आधार पर शुरू की गयी है. इसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 20 जजों को नाम लेकर भ्रष्ट बताया है.

इससे पहले 2 मौकों पर जस्टिस कर्नन पेश नहीं हुए. इस वजह से सुप्रीम कोर्ट को उनके खिलाफ ज़मानती वारंट जारी करना पड़ा था. अगर वो आज भी पेश नहीं होते तो उनके खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश जारी हो सकता था. ऐसे में तमाम निगाहें कोर्ट पर टिकी थीं.

अपने खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी होने के बाद जस्टिस कर्नन ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और बाकी जजों पर दलित उत्पीड़न का आरोप लगाया. उन्होंने मुआवजे की मांग की और अलग-अलग शहरो में धरने पर बैठने की भी बात कही. ऐसे में कयास लगाए जा रहे थे कि वो शायद आज भी सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं होंगे. लेकिन वो पेश हुए.

कोर्ट में जस्टिस कर्नन ने अपनी बात रखते हुए कहा, "मैंने अवमानना नहीं की है. मैं खुद एक संवैधानिक पद पर हूं. मुझे दोबारा न्यायिक और प्रशासनिक काम करने दिया जाए."

अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के बाद जस्टिस कर्नन से न्यायिक और प्रशासनिक काम वापस लेने वाली बेंच ने कहा, "क्या आप चिट्ठी में लगाए गए आरोपों को वापस लेना चाहते हैं? क्या आप अपने बर्ताव के लिए माफी चाहते हैं?"

जस्टिस कर्नन ने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया. वो बार-बार खुद को दोबारा काम दिए जाने की मांग दोहराते रहे. कोर्ट में मौजूद एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और दूसरे वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि अवमानना का मामला इस तरह खत्म नहीं हो सकता. आरोपी को बिना शर्त माफ़ी मांगनी होती है, जिस पर कोर्ट विचार करता है. वकीलों ने अवमानना की कार्रवाई शुरू होने से पहले और बाद में जस्टिस कर्नन के बर्ताव के कई पहलुओं पर एतराज़ जताया.

बेंच ने जस्टिस कर्नन को जवाब दाखिल करने का एक और मौका दे दिया. उन्हें ये बताना होगा कि वो जजों पर लगाए आरोप पर कायम रहना चाहते हैं या उन्हें वापस लेते हुए माफ़ी मांगना चाहते हैं. बेंच ने ये भी कहा कि अगर वो खुद को मानसिक या शारीरिक रूप से मामले के लिए सक्षम नहीं पा रहे हैं तो वो इसके लिए आवेदन कर सकते हैं.

हालांकि, बेंच के उठने के बाद भी जस्टिस कर्नन ये कहते हुए सुने गए कि उन्हें जेल भेज दिया जाए लेकिन काम करने से न रोका जाए.

जस्टिस कर्नन मद्रास हाई कोर्ट में जज रहने के दौरान से ही विवादों में रहे हैं. उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी कर दिया था. कई साथी जजों पर दलित उत्पीड़न का आरोप लगाया था. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जब उन्हें कलकत्ता हाई कोर्ट ट्रांसफर करने का आदेश दिया तो उन्होंने अपनी तरफ से इस आदेश पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद कर्नन कलकत्ता हाई कोर्ट गए, लेकिन चेन्नई में सरकारी मकान खाली नहीं किया. मद्रास हाई कोर्ट की कई फाइलें भी अपने साथ ले गए. इसे लेकर मद्रास हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल किया हुआ है.