श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर बदल रहा है! यह हम नहीं कह रहे है यह कह रही है एक तस्वीरे जो शायद बहुत लोगों के खयालों में भी नहीं होगी. यह तस्वीर है, उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के उस ईलाके की जहां कभी सिर्फ बंदूक का राज चलता था और जहां सेना का मतलब दुश्मन था. यह इलाका है कुनन्पोश्पोरा, जिस का नाम 1990 की शुरुआत में 22 महिलाओं के कथित सामूहिक बलात्कार से जुड़ा था. 

लेकिन आज श्रीनगर से 110 किलोमीटर दूर कुपवाड़ा जिले के उसी कुननपोशपोरा इलाके में कश्मीरी महिलाएं आने वाले स्वतंत्रता दिवस से पहले अपना एक बड़ा ऑर्डर तयार करने में जुटी हैं. 15 अगस्त से पहले सेना और सरकारी दफ्तरों के लिए बड़े पैमाने पर तिरंगा (राष्ट्रीय ध्वज) सिलने का काम मिला है, इसके लिए यह महिलाएं भी एक फौजी की तरह ही काम कर रही हैं.

यह बदलाव एक दिन में नहीं आया, इस के लिए सेना और कई NGO को दशकों तक लोगों के बीच काम करना पड़ा. पहले सेना के इस पूरे ईलाके में ऑपरेशन सद्भावना में कई सालोजन सेवा के काम किये और जब धीरे धीरे लोगो का विश्वास सेना पर बढ़ा तो इलाके की महिलाओ के लिए भी सहयोग के काम शुरू किये गए. जिसकी पहली कड़ी यहां का टेलरिंग और कढ़ाई का इंस्टीट्यूट बना. यह सेंटर 17 मार्च 2021 में शुरू किया गया था.

केंद्रीय मंत्रालय के जन शिक्षण संस्थान योजना के तहत सेना के सहयोग से बबागुंड गांव में बने टेलरिंग और कढाई सेंटर में  कुनन-पोशपोरा इलाके की लड़कियां काम सीखती हैं. यहां काम करने वाली जमीला का कहना है कि सेंटर सेना की मदद से चलाया जा रहा है. इस सेंटर में कुनन-बबाकुंड और इसके आसपास के गांवों की लड़कियों को टेलरिंग, कटिंग और फैशन डिजाइनिंग का काम सिखाया जाता है. सेंटर में प्रशिक्षक का काम करने वाली जमीला बानो का कहना है कि एक सेना वर्दी पहनकर देश सेवा कर रही है. वहीं, हम तिरंगा बनाकर देशप्रेम की भावना बढ़ाने में योगदान दे रही हैं.'

यहां करीब 40 लड़कियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ट्रेनिंग के साथ-साथ ये लड़कियां ड्रेस भी तैयार करती हैं. हाल ही में मास्क का ऑर्डर आया था. उसे भी इन्होंने ही तैयार किया. लेकिन आज कल इस सेंटर में लड़कियां तिरंगा सिलती हैं, और उसकी सप्लाई सेना में होती है. यहां काम करने वाली एक लड़की ने कहा कि जब हम यहां तिरंगे बनाते हैं, तो ऐसा एहसास होता है कि हम भी अपने देश की सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं.

एक अन्य युवती रुकैया का कहना है कि वह यहां सिलाई और कढ़ाई का काम सीख रही है जो आगे जाकर उसे काफी फायदा होगा, और वह इससे अपना रोजगार कमा सकेंगी. उन्होंने कहा कि आज तक इतने तिरंगे बना चुकी है, जिसकी कोई गिनती भी नहीं. 

वहीं इस मामले में सेना का कहना है कि शुरू में यहां बहुत कम लड़कियां थीं लेकिन, जब उन्हें लगा कि वह यहां से कुछ सीख कर जाएंगी, तो उनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई. अब हाल यह है कि लोग चाहते है कि ऐसे सेंटर लगभग सभी गांवों में शुरू किए जाने चाहिए जिस से महिलाएं आत्मनिर्भर हो सकें.

कश्मीर में जन शिक्षण संस्थान के निदेशक डॉ. इकबाल ने बताया कि पूरे भारत में जहां 240 जिलों में कुल 240 जीएसएस सेंटर हैं लेकिन कश्मीर में केवल एक ही इंस्टीट्यूट है, जो कुपवाड़ा में है. इसके अंतर्गत जिले में करीब 60 सेंटर हैं, जिसमें से 40 सेंटर सेना के सहयोग से चलाए जा रहे हैं जहाँ इलेक्ट्रिशियन, शेफ, फ्रंटलाइन वर्कर, हेंडीक्राफ्ट, फैशन डिजाइनिंग, आदि कोर्स कराए जा रहे हैं. 

कुनन गांव में चलाए जा रहे इस सेंटर सेंटर से जुड़े करीब छह सेंटर ऐसे हैं, जहां सेना और बाकी सरकारी दफ्तरों के लिए सिर्फ राष्ट्रिय धवज बनाया जाता है.