Jamiat Ulama-e-Hind: जमीयत उलमा-ए-हिंद की बैठक प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा कर के देश में अमन व शांति को ख़राब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये से अपनी गहरी नाराज़गी व नापसंदगी ज़ाहिर करती है.

बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और दीगरमस्जिदों के खिलाफ़ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं जिससे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है. वहीं, ज़मीयत उलमा-ए-हिंद के सम्मेलन में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह के संबंध में प्रस्ताव पास हुआ.

नहीं होगा देश को कोई फायदा

इन विवादों को उठा कर साम्प्रदायिक टकराव और बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व की नकारात्मक राजनीति के लिए अवसर निकाले जा रहे हैं. हालांकि यह स्पष्ट है कि पुराने विवादों को जीवित रखने और इतिहास की कथित ज़्यादतियों और गलतियों को सुधारने के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलनों से देश का कोई फ़ायदा नहीं होगा. खेद है कि इस संबंध में बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है और ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई है जिसके तहत संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी वह उसी तरह बरक़रार रहेगी. 

देश में शांति के लिए इतिहास के मतभेदों को बार-बार जीवित करना उचित नहीं

निचली अदालतों ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी की है जिस में अन्य इबादतगाहों की स्थिति की सुरक्षा के लिए इस अधिनियम का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. जमीयत उलमा-ए-हिंद सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार-बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव के लिए हरगिज़ उचित नहीं है.

खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में ’पूजा स्थल क़ानून 1991 एक्ट 42’ को संविधान के मूल ढ़ांचे की असली आत्मा बताया है. इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा. जमीयत ने नसीहत देते हुए कहा कि, सरकार राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए.

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