नई दिल्ली: इसरो ने जिस कार्टोसैट-3 सैटेलाइट को आज अंतरिक्ष में छोड़ा है वो खास तौर से सैन्य उद्देश्य के लिए है और आसमान से भारत के लिए खुफिया निगाहों की तौर पर काम करेगी. माना जा रहा है कि देश की सेनाओं को जब भी किसी सर्जिकल स्ट्राइक या फिर बालाकोट जैसी एयर-अटैक की जरूरत होगी तो कार्टोसैट-3 का इस्तेमाल किया जायेगा.


इसरो ने बुधवार सुबह ठीक 9.28 मिनट पर पीएसएलवी-सी47 से कार्टोसैट-3 सहित 13 दूसरे नैनो सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा से लांच किया. ये नैनो-सैटेलाइट अमेरिका के लिए कॉमर्शियल उपयोग के लिए छोड़े गए हैं. लेकिन कार्टोसैट पूरी तरह से सुरक्षा के इस्तेमाल के लिए है. हालांकि, इसका उपयोग मौसम और प्राकृतिक-आपदा के समय में भी किया जा सकता है.


थर्ड जेनरेशन सैटेलाइट माने जाने वाला कार्टेसैट-थ्री में इस तरह के कैमरे लगे हैं कि पृथ्वी से करीब 500 किलोमीटर (509 किलोमीटर) दूर पोलर-ऑर्बिट से भी हाथ की कलाई पर बंधी घड़ी की सुईयों को देख कर उनकी तस्वीरें कमांड सेंटर में भेज सकता है. जानकारी के मुताबिक, इसमें थर्मल इमेजिंग कैमरा भी लगे हैं ताकि रात के अंधेरे में भी ये तस्वीरें ले सकता है. इसरो से मिली जानकारी के मुताबिक, कार्टोसैट-थ्री का रिज़ॉल्यूशन मात्र 25 सेंटीमेटर है जबकि कार्टेसैट-टू का रिज़ॉल्यूशन करीब एक मीटर था.



सूत्रों के मुताबिक, कार्टोसैट-3 का उपयोग सरहद पर दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जायेगा. एलओसी पर पाकिस्तानी सेना की मूवमेंट सहित आतंकियों की घुसपैठ पर भी इससे निगरानी रखी जाएगी. दुश्मन के बंकर और चौकियों में किस तरह की हरकत हो रही है उसकी तस्वीरें भी अब भारतीय सेना को मिल सकेंगी.


आपको बता दें कि वर्ष 2016 में उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने एलओसी पार कर जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी उस दौरान भी इस कार्टोसैट के पुराने वर्जन कार्टोसैट-2 से दुश्मन के इलाके की तस्वीरें लेकर ही ऑपरेशन छेड़ा गया था.


कार्टोसैट सीरिज का ये नौवां सैटेलाइट है. इस सीरिज का पहला कार्टोसैट वर्ष 2005 में छोड़ा गया था. इतनी कम रिज़ॉल्यूशन के सैटेलाइट अभी तक अमेरिका जैसे देशों के पास ही थे. लेकिन अब भारत भी इस श्रेणी में शामिल हो गया है.