IPS Sanjiv Bhatt: पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को ड्रग्स केस में सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली. मामले में नियमित जमानत मांग रहे भट्ट ने इसके बाद अपनी याचिका वापस ले ली. भट्ट पर 1996 में एक वकील को ड्रग्स के झूठे केस में फंसाने का आरोप है. जांच के बाद यह पूरा मामला झूठा पाया गया था. 2018 में इस मामले में संजीव भट्ट की गिरफ्तारी हुई थी. 1996 में संजीव भट्ट जब गुजरात के बनासकांठा के एसपी थे, तब उन्होंने वहां के एक होटल से सुमेर सिंह राजपुरोहित नाम के व्यक्ति को 1 किलोग्राम ड्रग्स के साथ गिरफ्तार करने का दावा किया था. पेशे से वकील राजपुरोहित ने खुद को फंसाए जाने की शिकायत दी थी.


क्या है मामला?
कुछ ही समय बाद जांच में यह सामने आ गया कि राजपुरोहित को राजस्थान के पाली में उनके घर से अगवा कर लाया गया था. उनको फंसाने के लिए संजीव भट्ट और कुछ और पुलिसवालों ने उन्हें ड्रग्स के साथ गिरफ्तार दिखाया. शुरू में राजस्थान पुलिस ने मामले की जांच की थी. बाद में गुजरात सीआईडी की जांच में भी यही तथ्य सामने आए. सीआईडी ने मामले में निचली अदालत में चार्जशीट भी दाखिल की है. 2018 में गुजरात हाई कोर्ट के आदेश पर भट्ट को अवैध तरीके से ड्रग्स जुटाने और झूठा केस बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.


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आज क्या हुआ?
जस्टिस हेमंत गुप्ता और विक्रम नाथ की बेंच के सामने संजीव भट्ट के लिए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए. उन्होंने कहा कि वह 4 साल से हिरासत में हैं. उन्हें जमानत दे दी जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि मामले में आरोप बहुत गंभीर प्रकृति के हैं. दोषी पाए जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है. कोर्ट ने यह भी कहा कि भट्ट ने निचली अदालतों में जमानत की पूरी कोशिश नहीं की है. जजों के रुख को देखते हुए सिब्बल ने याचिका वापस ले ली.


एक मामले में मिल चुकी है उम्रकैद
2015 में नौकरी से बर्खास्त किए गए संजीव भट्ट पर और भी कई मामले दर्ज हैं. उनके ऊपर 1990 में जामनगर में एडिशनल एसपी रहते हुए एक व्यक्ति को हिरासत में प्रताड़ित कर जान से मारने का आरोप साबित हो चुका है. इस केस में वह उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. 


दंगों को लेकर भी पकड़ा गया था झूठ
2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर किए गए संजीव भट्ट का दावा भी सुप्रीम कोर्ट ने झूठा पाया था. नानावटी आयोग की रिपोर्ट में भी यह बात कही गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि भट्ट ने दंगों के 9 साल बाद यह दावा किया कि वह 27 फरवरी 2002 में सीएम के घर पर हुई बैठक में मौजूद थे. यह दावा पूरी तरह झूठा है. उन्होंने एनजीओ और दूसरे पक्षों के साथ मिल कर झूठी कहानी बनाने की कोशिश की.


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