भारतीय वायुसेना एक ऐसे ऐतिहासिक कदम की तैयारी में है, जो आने वाले दशकों तक देश की सुरक्षा नीति की दिशा तय करेगा. लगभग ₹1.66 लाख करोड़ रुपये की लागत वाला मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) प्रोजेक्ट न केवल भारत की वायु शक्ति को आधुनिक बनाएगा, बल्कि यह मेक इन इंडिया मिशन को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाएगा. यह सौदा सिर्फ विमान खरीदने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत का उदाहरण बनेगा. इसके तहत 114 नए जेट्स भारतीय वायुसेना की स्क्वॉड्रन संख्या को 31 से बढ़ाकर 42 तक पहुंचाने में मदद करेंगे. इससे भारत एक साथ चीन और पाकिस्तान जैसे दो मोर्चों पर प्रभावी जवाब देने में सक्षम होगा.

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MRFA प्रोजेक्ट को खास तौर पर टू-फ्रंट वॉर यानी दो दिशाओं से होने वाले संभावित संघर्षों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. आने वाले जेट्स 4.5 जनरेशन की तकनीक से लैस होंगे, जो हवा से हवा और हवा से जमीन तक दोनों तरह के मिशनों में सक्षम होंगे. इन विमानों की खासियत यह होगी कि वे न केवल दुश्मन के फाइटर जेट को हवा में ही नष्ट कर सकते हैं, बल्कि सटीक ग्राउंड स्ट्राइक और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (Electronic Warfare) जैसी उन्नत तकनीक में भी दक्ष होंगे. पुरानी स्क्वॉड्रनों से रिटायर हो रहे MiG-21 और Jaguar विमानों की जगह ये नए जेट्स भविष्य की हवाई जरूरतों को पूरा करेंगे.

मेक इन इंडिया के साथ रक्षा आत्मनिर्भरता की उड़ान

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यह प्रोजेक्ट भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता को नई दिशा देने वाला है. केंद्र सरकार ने इसे पूरी तरह मेक इन इंडिया पहल से जोड़ने का फैसला किया है. इसका अर्थ है कि अधिकांश जेट्स का निर्माण भारत में ही किया जाएगा. हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और निजी रक्षा कंपनियां मिलकर इसका उत्पादन करेंगी. इसके साथ ही इन विमानों को भारतीय मिसाइल सिस्टम जैसे अस्त्र और ब्रह्मोस से लैस किया जाएगा. इस प्रक्रिया से न केवल देश में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा, बल्कि रक्षा क्षेत्र में विदेशी तकनीक का हस्तांतरण (Technology Transfer) भी संभव होगा. यह सौदा भारत को एक खरीदार राष्ट्र से निर्माता राष्ट्र में बदलने की दिशा में निर्णायक कदम माना जा रहा है.

कौन बनेगा भारत का नया आसमानी रक्षक?

भारतीय वायुसेना ने 114 विमानों की खरीद के लिए सात प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को चुना है. इनमें फ्रांस का रफाल F4, अमेरिका के F/A-18 ब्लॉक III और F-21, स्वीडन का ग्रिपेन E, यूरोप का यूरोफाइटर टाइफून, और रूस के मिग-35 व सुखोई Su-35 शामिल हैं. इन सभी विमानों की अपनी-अपनी तकनीकी ताकतें हैं. उदाहरण के लिए, राफेल F4 अपनी विश्वसनीयता और मेटिओर मिसाइल क्षमता के लिए जाना जाता है, जबकि ग्रिपेन E कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित सेंसर सिस्टम से लैस है. अमेरिका का F-21 विशेष रूप से भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया गया है और रूस के सुखोई Su-35 अपनी लंबी रेंज और फुर्तीले उड़ान कौशल के लिए प्रसिद्ध है. रक्षा मंत्रालय अगले 12 से 18 महीनों में तकनीकी मूल्यांकन पूरा करेगा, जिसके बाद फाइनल चयन किया जाएगा.

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