नई दिल्ली: नए थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि भारत आतंकवादी गतिविधियों का पूरी क्षमता से ‘‘मजबूत’’ जवाब देगा जिससे पाकिस्तान आतंकवाद और उग्रवाद का समर्थन करने की अपनी रणनीति पर पूरी तरह से पुनर्विचार करने के लिए बाध्य हो जाएगा.
उप.प्रमुख के रूप में जनरल रावत ने नियंत्रण रेखा के पार आतंकवादी ठिकानों पर लक्षित हमलों में सक्रिय भूमिका निभायी थी. उनका मानना है कि यह सुनिश्चित करना होगा कि ‘‘पीड़ा’’ आतंकवादियों और उसके समर्थकों को भी महसूस हो और यह जरूरी नहीं है कि जवाब हमेशा एक ही तरह का हो.
उन्होंने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की पाकिस्तान की धमकी को खारिज कर दिया और कहा कि जब अपनी सीमाओं की रक्षा की बात आती है तो ऐसे बयान भारत को नहीं रोक सकेंगे.
जनरल रावत ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘हालांकि हम सहमत हैं कि हमें जवाब देना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि पीड़ा आतंकवादियों और उसके समर्थकों को भी महसूस हो लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जवाब हमेशा एक समान ही हो.’’ जनरल रावत ने 31 दिसंबर को थलसेना के 27वें प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला. उन्होंने कहा कि हम इस तरह से जवाब देंगे कि इसका उन पर गहरा असर हो और लंबे समय में हमारे देश में उग्रवाद और आतंकवाद का समर्थन करने की अपनी रणनीति पर पूरी तरह से पुनर्विचार करने के लिए बाध्य हो जाएं.
जनरल रावत ने यह भी कहा कि हर घटना को एक ही नजरिए से देखने की जरूरत नहीं है क्योंकि घाटी में ‘‘बड़ी संख्या’’ में आतंकवादी सक्रिय हैं और वे हमेशा इस प्रयास में रहते हैं कि सुरक्षा बलों और नागरिकों के खिलाफ किसी न किसी प्रकार की हिंसा को अंजाम दिया जाए. परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किए जाने की पाकिस्तान की धमकी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि परमाणु हथियार प्रतिरोधक हथियार होते हैं.
उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की अपनी रणनीति की समीक्षा कर रहा है तो यह ऐसा है कि जैसे उन्होंने इसे रणनीति के तौर पर गौर करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के बयानों का न तो भारत ने और न ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने समर्थन किया है. जनरल रावत ने कहा कि प्रतीक्षा करनी होगी और देखना होगा कि पाकिस्तान अंतत: क्या फैसला करता है.
उन्होंने कहा कि अगर सीमाओं पर पाकिस्तान के साथ टकराव के लिए भारत को बाध्य किया जाता है तो संभव है कि सरकार धमकियों से नहीं रूकेगी. सरकार ही परमाणु नीति तय करती है.
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत को ‘‘पहले इस्तेमाल नहीं करने की नीति’’ की समीक्षा करने की आवश्यकता है, उन्होंने कहा कि सभी नीतियां समीक्षा के लिए विषय हैं.
जनरल रावत ने कहा, ‘‘ कोई नीति जो बनती है, वह समीक्षा और विश्लेषण के लिए खुली होती है . अगर किसी समीक्षा की आवश्यकता हुयी और यह महसूस किया गया कि समीक्षा की आवश्यकता है, हम सरकार के साथ रहेंगे.’’ उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और परमाणु नीति का फैसला उनके स्तर पर नहीं बल्कि सरकार द्वारा किया जाता है.
जनरल रावत ने कहा कि कई दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं और इसे जारी किया जाएगा. लेकिन अगर कोई समीक्षा करनी होगी तो निर्देश अनुक्रम से आएगा. उन्होंने सेना के आधुनिकीकरण पर भी विस्तार से चर्चा की और कहा कि समय आ गया है कि नयी प्रौद्योगिकी को अंगीकार किया जाए तथा उन्हें हथियार प्रणाली और उन उपकरणों के अनुकूल बनाया जाए जिन्हें हम सशस्त्र बलों में शामिल करना चाहते हैं.
उन्होंने स्वीकार किया कि हर साजोसामान ‘‘मेड इन इंडिया’’ नहीं हो सकता और सेना हथियारों का निर्माण करने वाली कुछ अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सहयोग तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर भी गौर कर रही है. ऐसा होने से घरेलू उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा.