नई दिल्ली: प्याज, सब्जी के तौर पर मिले तो खाने का स्वाद बढ़ा देती है, दाम बढ़ जाए तो किचन का बजट बिगाड़ देती है. सियासी मुद्दा बन जाए तो सरकार गिरा देती है और अगर किसान को वाजिब दाम न मिले जो आत्महत्या करने पर मजबूर कर देती है. एक प्याज के कई रंग हैं. भारत समेत पूरी दुनिया में प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी है. प्याज महत्वपूर्ण है लेकिन साथ ही महत्वपूर्ण है प्याज उगाने वाले किसानों के बदतर हालात पर चर्चा करना भी. आखिर क्यों तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पंजाब समेत देश के अलग-अलग हिस्सों के किसान आंदोलन कर रहे हैं. आखिर क्यों देश का अन्नदाता कहीं कपड़े उतारकर प्रदर्शन कर रहा है तो कहीं अपना पेशाब पीकर. आखिर कौन जिम्मेदार है उनके इस हालात के लिए? कौन जिम्मेदार है उनकी आत्महत्या के लिए ?
भारत की बात करें तो तो दूनिया में सबसे ज्यादा प्याज उगाने वाले देशों में भारत दूसरे स्थान है. पहले नंबर पर चीन है. हालांकि भारत में प्याज की उत्पादन बहुत कम (14.21 टन / हेक्टेयर) है. वह चीन और अन्य देशों जैसे मिस्र, नीदरलैंड, और ईरान आदि की तुलना में बहुत पीछे है. आइए एक नजर डालते हैं दुनिया भारत और चीन के बीच प्याज उत्पादन पर
दुनिया के दो प्रमुख प्याज उत्पादक देशों के बीच तुलना देखिए
देश क्षेत्र उत्पादन उत्पादकता (एमटी / एचए) दुनिया में कुल उत्पादन का हिस्सा
चीन 930.21 20507.76 22.0 26.99
इंडिया 1064.00 15118.00 14.2 19.90
दुनिया में दूसरे नंबर के प्याज उत्पादक देश में किसानों की हालत बेहद खराब
देश में प्याज उगाने वाले किसानों की हालत खराब है. न्यूनतम समर्थन मुल्य के बावजूद उनको उनकी मेहनत का सही दाम नहीं मिल पाता है. बिचौलिए उनका हक खा जाते हैं. कहीं 1 रूपये तो कहीं 2 रूपये किलों प्याज बेचने पर वह मजबूर हैं. हालात ऐसे हैं कि वह सड़कों पर आने को मजबूर हैं. अपना विरोध जताने के लिए मजबूर हैं.
हाल में ही नासिक जिले के निफाड तहसील के रहने वाले संजय साठे ने बताया कि मैंने इस मौसम में 750 किलोग्राम प्याज उपजाई, लेकिन पिछले हफ्ते निफाड थोक बाजार में एक रूपये प्रति किलोग्राम की दर की उसे खरीदने की पेशकश की गई. मोलभाव के बाद मैंने 1.40 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से प्याज भेजा. मुझे महज 1064 रुपए मिले. बता दें कि इस मुल्य को उन्होंने अपना विरोध जताने के लिए पीएमओ भेज दिया था.
भारत में कहां होता प्याज का सबसे ज्यादा उत्पादनदेश में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 4905.0 हजार टन प्याज का उत्पादन होता है. वहीं दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा कर्नाटक में 2592.2 हजार टन उत्पादन है. महाराष्ट्र और कर्नाटक के अलावा गुजराज में 1514.1 हजान टन, बिहार में 1082.0 हजार टन, मध्य प्रदेश में 1021.5 हजार टन और आंध्र प्रदेश में 812.6 हजार टन उत्पादन होता है. इसके अलावा राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में यह कुछ हिस्सों में क्रमशः 494.2, 453.9 और 368.6 हजार टन तक उगाया जाता है.
कब बाजार में आता है प्याजप्याज की आवश्यकता पूरे वर्ष में लगभग स्थिर रहती है. ताजा प्याज की उपलब्धता 7 या 8 महीने तक सीमित होती है और एक वक्त ऐसा आता है जब कीमतें अचानक बढ़ जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्याज का स्टोरज खराब तरीके से होता है.
प्याज मुख्य तौर पर तीन अलग-अलग सीजन में मिलती है. नीचे देखिए
राज्य फसल का मौसम उपलब्धता
महाराष्ट्र और गुजरात खरीफ की फसल अक्टूबर - दिसंबर, जनवरी - मार्च, अप्रैल - जून
तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश प्रारंभिक खरीफ खरीफ रबी अगस्त अक्टूबर - नवंबर मार्च
राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, खरीफ-रबी नवंबर - दिसंबर, मई - जून हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा खरीफ रबी
भारत में प्याज के उत्पादन में 2017-18 के फसल वर्ष आई गिरावट
कृषि मंत्रालय के के आंकड़ों के अनुसार देश के प्याज उत्पादन में 2017-18 के फसल वर्ष में 4.5 प्रतिशत घटकर 21.4 मिलियन टन रहने का अनुमान है. मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि देश ने 2016-17 के फसल वर्ष (जुलाई-जून) में 22.4 मिलियन टन की प्याज उगाया था.
प्याज की निर्यात में हुई बढौतरी
भारत में प्याज की खरीददारी को और दाम को लेकर भले ही किसान सड़कों पर हों लेकिन भारत से प्याज का निर्यात पिछले पांच वर्षों में तेजी से बढ़ा है. 2007-08 में 10,08,606.50 टन से बढ़कर निर्यात 2011-12 में 13,09,863.26 टन हो गया है. निर्यात में 30% की वृद्धि देखी गई. प्याज की वजह से गिरी दिल्ली में बीजेपी की सरकारप्याज जितना महत्वपूर्ण लोगों इसको उगाने और खाने वालों के लिए है. उतना ही महत्वपूर्ण सियासत के लिए भी है. दिल्ली की सियासत में प्याज सत्ता पाने औक सत्ता से बेदखल करने दोनों ही सूरतों में ''राजनीतिक हथियार'' है. प्याज के बिना राजनीति कम-से-कम दिल्ली में तो इसकी कल्पना नहीं की जा सकती.
दरअसल 1993 से 1998 तक बीजेपी शासन में पहले मदन लाल खुराना और बाद में साहिब सिंह वर्मा सरकार ठीक-ठाक ही चला रहे थे कि इस कार्यकाल के आखिरी दिनों में अचानक प्याज कहीं लुप्त हो गया. बारिशों के दिनों में मंडियों में प्याज घट गया और प्याज के रेट आसमान छूने लगे. नासिक से प्याज कम आने से दिल्ली में रेट को आग लग जाती है. कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और वह कामयाब भी हुए. बीजेपी के हाथों से सत्ता चली गई.