नई दिल्ली: पिछले छह महीने से पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर विवाद खत्म करने के लिए सेना और सरकार एक खास ‘प्रपोज़ल’ पर विचार कर रही है. इस तीन-सूत्रीय प्रपोज़ल के तहत चीनी सेना फिंगर नंबर 8 से पीछे जाने के लिए तैयार है. बर्शेते भारतीय सेना को भी फिंगर 2 पर बनी अपनी स्थायी चौकी पर लौटना होगा. साथ ही पैंगोंग-त्सो के दक्षिण में कैलाश हिल रेंज से भी दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट सकती हैं. इसके अलावा दोनों देश चुशूल-मोल्डो सेक्टर से टैंक और तोपों को पीछे हटा सकते हैं.


सूत्रों के मुताबिक, आठवें दौर की कोर कमांडर स्तर की मीटिंग में एलएसी पर तनाव कम करने के लिए कुछ प्रपोज़ल सामने आए थे. उनमें से तीन सुझावों पर भारतीय सेना और सरकार की टॉप-लीडरशिप गहन विचार कर रही है. अगर ये तीनों सुझाव माने लिए गए तो जल्द ही पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर विवाद काफी कम हो सकता है. इस फॉर्मूले के तहत विवाद खत्म करने की शुरूआत पैंगोंग-त्सो से सटे इलाकों से होगी—उत्तर और दक्षिण दोनों में. पैंगोंग-त्सो के उत्तर में विवादित फिंगर एरिया है तो दक्षिण में चुशूल सेक्टर की मगर-हिल, गुरंग हिल, रेचिन-ला और मुखपरी जैसी पहाड़ियां हैं जो कैलाश हिल रेंज का हिस्सा है.


सूत्रों ने एबीपी न्यूज को बताया कि इस प्रपोज़ल के तहत दोनों देशों की सेनाएं तीन-चरणों में फिंगर-एरिया और कैलाश हिल रेंज (पर्वत-श्रृंखला) से अपने अपने सैनिकों को पीछे हटाएंगे. इस दौरान दोनों देशों की सेनाएं इलेक्ट्रोनिक और ड्रोन सर्विलांस से एक दूसरे की कार्यवाही पर नजर रखेंगे (कि पीछे हटी भी हैं या नहीं). इसके तहत दोनों देशों की सेनाएं पैंगोंग-त्सो लेक से सटे इलाकों में अप्रैल महीने के आखिर और मई महीने की शुरूआत वाली स्थिति पर वापस लौट आएंगे.


साथ ही जब तक एलएसी विवाद पूरी तरह सुलझ नहीं जाता है, दोनों देशों के सैनिक फिंगर 8 से फिंगर 4 तक पैट्रोलिंग नहीं कर पाएंगे. दरअसल, अप्रैल महीने की शुरूआत तक चीनी सेना फिंगर 8 के पूर्व में सिरिजैप और खुरनाक फोर्ट पर तैनात रहती थी. फिंगर 8 से फिंगर 5 के बीच चीनी सेना ने वर्ष 1999 में एक सड़क जरूर बनाई थी लेकिन ये इलाका खाली रहता था. भारतीय सेना भी फिंगर 5 से फिंगर 8 के बीच पैट्रोलिंग करती थी. भारतीय सेना की तैनाती फिंगर 2 पर 1962 के युद्ध के बाद स्थापित की गई ‘धनसिंह थापा’ पोस्ट (चौकी) पर रहती थी. लेकिन मई महीने की शुरूआत में चीनी सेना ने फिंगर 8 से फिंगर 4 तक पर अपना कब्जा जमाते हुए यहां अपनी चौकियां खड़ी कर ली. इसके अलावा एक हैलीपैड और सैनिकों के बैरक में तैयार कर लिए.


भारतीय सेना का मानना था कि ये दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए हुए समझौता का उल्लंघन है. यही वजह है कि 5-6 मई को फिंगर एरिया में दोनों देशों के बीच जमकर झगड़ा हुआ था और उसका वीडियो भी वायरल हुआ था. इसके बाद से ही दोनों देशों के सैनिकों फिंगर 4 पर आई-बॉल टू आई-बॉल आ गए थे.


इसके अलावा, चीनी सेना पर दवाब बनाने के लिए भारतीय सेना ने 29-30 अगस्त की रात को एक चुशूल-मोल्डो सेक्टर की कैलाश हिल रेंज की कई चोटियों को अपने अधिकार-क्षेत्र में कर लिया था. इस कारवाई से चीन (तिब्बत) का मोल्डो गैरिसन, स्पूंगर-गैर और रेचिन-ग्रेजिंग लैंड सीधे भारतीय सेना की जद में आ गए थे. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के कमांडोज़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भारतीय सेना के इस पलटवार से बौखलाई चीनी सेना भी कैलाश हिल रेंज के कई इलाकों में भारतीय सेना की अस्थायी चौकियों को बरछी-भालों जैसे मध्यकालीन बर्बर हथियार लेकर घेरने की कोशिश कर रही थी.


नए सुझाव में दोनों देश चुशूल-मोल्डो सेक्टर से टैंक और तोपों को भी पीछे करने के लिए तैयार हो गए हैं. अभी तक गलवान घाटी, गोगरा, हॉट-स्प्रिंग और डेपसांग-प्लेन्स जैसे इलाकों में तनाव कम करने को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है. लेकिन माना जा रहा है कि फिंगर एरिया और कैलाश हिल रेंज में तनाव खत्म करने के बाद इन इलाकों में तनाव कम करने पर चर्चा हो सकती है.


आपको बता दें कि मंगलवार को एक सम्मेलन में बोलते हुए थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने संभावना जताई थी कि आठवें दौर की मीटिंग के बाद दोनों देश (शांति बहाली के लिए) किसी समझौते पर पहुंच सकते हैं.


इस बीच खबर है कि सेना प्रमुख दो दिवसीय दौरे पर चीन से सटी उत्तराखंड के दौरे पर गए हैं. बुधवार को जनरल नरवणे ने गढ़वाल रेंज के जोशीमठ का दौरा कर सेना की ऑपरेशनल तैयारियों का जायजा लिया. गुरूवार को थलसेनाध्यक्ष कुमाउं रेंज के पिथौरागढ़ का दौरा करेंगें. पिथौरागढ़ के कालापानी और लिपूलेख ट्राइजंक्शन (भारत-चीन-नेपाल बॉर्डर) को लेकर ही हाल ही में भारत और नेपाल के संबंधों में तल्खी आ गई थी. लेकिन पिछले हफ्ते जनरल नरवणे के नेपाल दौरे से दोनों देशों के संबंध एक बार फिर से पटरी पर लौटते नजर आ रहे हैं.