कोरोना वायरस के बढ़ते कहर के बीच इससे बीमारी से निजात पाने के टीके का बेसब्री से इंतजार हो रहा है. भारत में करीब 30 समूह कोरोना वायरस के खिलाफ टीका विकसित करने की कोशिश में लगे हैं जिनमें बड़े उद्योग घरानों से लेकर वैज्ञानिक तक हैं. इस बात की जानकारी प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) के विजय राघवन ने दी.
राघवन ने कहा कि इन 30 में से 20 समूह बहुत तेज रफ्तार से काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ''भारत में बड़े उद्योगों से लेकर वैज्ञानिक तक करीब 30 समूह कोविड-19 के खिलाफ टीका विकसित करने की कोशिश में लगे हैं जिनमें से 20 अच्छी रफ्तार से काम कर रहे हैं.''
राघवन ने किसी समूह का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा कि इनमें से कुछ प्री-क्लीनिकल स्तर पर हैं और अक्टूबर तक क्लीनिकल लेवल पर पहुंच सकते हैं. इस समय टीका नहीं होने और लॉकडाउन खुलने के बाद अगले कुछ महीने में इसके विकास की संभावना के प्रश्न पर उन्होंने तेजी से जांच और मामलों का पता लगाये जाने पर जोर दिया.
उन्होंने कहा, ''टीके आएंगे, लेकिन उनकी अपनी जटिलताएं होंगी. तब तक आप क्या करेंगे? अपना चेहरा ढकिए, अपने हाथ धोइए और जितना संभव हो दूरी बनाकर रखिए.'' राघवन ने कहा, ''लॉकडाउन खुलने पर चीजें मुश्किल हो सकती हैं और इसलिए आपके पास जांच और मामलों का पता लगाने के विकल्प हैं. ये बहुत महत्वपूर्ण हैं. जिस क्षण किसी में लक्षण दिखाई दें और वह संक्रमित मिले, तभी उससे पहले संपर्क में आए लोगों का पता लगाकर उन्हें पृथक किया जाए. इस तरह आक्रामक और बहुत त्वरित तरीके से जांच और मामलों का पता लगाना बहुत जरूरी है.''
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में टीका बनाने में करीब 10 साल लगते हैं और इसकी लागत करीब 20 से 30 करोड़ डॉलर तक आती है, लेकिन दुनियाभर में कोरोना वायरस के लिए एक साल के अंदर टीका बनाने के लक्ष्य के साथ काम हो रहा है.
टीके के विकास में भारतीय कंपनियों और संस्थाओं के कामकाज पर रोशनी डालते हुए उन्होंने कहा कि देश में ही इसे बनाने के प्रयास चल रहे हैं. दूसरी तरफ भारतीय कंपनियों और संस्थाओं ने इसी मिशन पर काम कर रहीं बाहर की संस्थाओं के साथ भी साझेदारी की है.
उन्होंने कहा कि सभी के लिए टीका सुलभ बनाना भी बड़ी चुनौती का काम है क्योंकि सबसे अधिक कमजोर वर्ग को इसकी सर्वाधिक जरूरत होगी. राघवन ने कहा कि नई दवा बनाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम होता है और इसी तरह टीका बनाने में बहुत लंबा वक्त लगता है.
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