Bio Refinery To Tackle E-Waste: IIT-गुवाहाटी ड्रॉपआउट एक युवा ने इलेक्ट्रॉनिक कचरे (E-waste) से कीमती धातुओं को निकालने के लिए भारत की अग्रणी बायो-रिफाइनरी मशीन बनाई है. 25 साल के अनंत मित्तल (Anant Mittal) ने इसे अपने शहर रुड़की में एक व्यावसायिक स्थान पर बनाया है. इसकी मदद से एक दिन में 150 किलोग्राम ई-कचरा संसाधित किया जा सकता है.


फिलहाल वो इसके कर्मशलाइजेशन का इंतजार कर रहे हैं. दरअसल ने उन्होंने अपने ड्रोन प्रोजेक्ट्स पर ज्यादा समय देने के लिए 2020 में बीटेक (सिविल इंजीनियरिंग) की पढ़ाई छोड़ दी थी. इससे पहले उन्होंने भारत में  सबसे अच्छा बाजार-अनुकूल ड्रोन बनाने के लिए दक्षिण कोरियाई और चीनी ड्रोन कंपोनेंट्स को कॉन्फ़िगर किया.


बायो-रिफाइनरी को बताया ग्रीन और क्लीन तकनीक 


इसके साथ ही अब अनंत और उनकी टीम ने ई-कचरे से 98 प्रतिशत एक्सट्रैक्शन रेट के साथ कीमती धातुओं (सोना और पैलेडियम) को पुनर्प्राप्त करने के लिए बायो-रिफाइनरी विकसित की है. उनका कहना है कि ये प्रक्रिया ई-कचरे से बड़े पैमाने पर कीमती धातुओं को माइक्रोब्स के इस्तेमाल से निकालने के लिए एक ग्रीन और क्लीन तकनीक है. 


तकनीकों में पायरोमेटालर्जी और हाइड्रोमेटालर्जी शामिल 


ई-कचरे के रिसाइकिल की तकनीकों में पायरोमेटालर्जी और हाइड्रोमेटालर्जी शामिल हैं. पायरोमेटालर्जी में आमतौर पर धातुओं को मुक्त करने और अलग करने के लिए सर्किट बोर्डों को जलाना शामिल होता है. दूसरी ओर, हाइड्रोमेटालर्जी धातुओं के लिए मजबूत एसिड या साइनाइड-आधारित समाधानों का उपयोग करता है. पायरोमेटालर्जी में डाइऑक्सिन और हाइड्रोमेटालर्जी में साइनाइड जैसी कोई हानिकारक गैस और रसायन नहीं निकलते हैं.


अनंत का कहना है कि यह अविष्कार न केवल आयात पर हमारी निर्भरता को कम कर सकता है, बल्कि यह एक अधिक टिकाऊ अर्थव्यवस्था में संभावित योगदान भी दे सकता है. उनका इनोवेशन इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि तमाम बाधाओं के बावजूद भी सफलता कैसे हासिल की जा सकती है. 


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