नई दिल्लीः कॉलर पर चार सितारे. कंधे से पॉकेट तक झूलती रस्सी और फौलादी सीने पर लटकता वीरता का पदक, कंधे पर लगा बैज और दिल में देशभक्ति का जज्बा. कौन भारतीय युवा नहीं चाहता है कि इस ड्रेस को अपने तन पर धारण करे. रौबीला चेहरा और कड़क आवाज. चीते की चाल और शेर सा बलशाली. निर्णय क्षमता में दक्ष और गिद्ध की दृष्टि कुछ ऐसे ही होते हैं हमारे थल सेना प्रमुख. जिनके पास होती है देश भर की सभी आर्मी की कमांड.

कठिन ट्रेनिंग, फौलादी सीना, सफल रणनीतिकार और अपने हौसलों से दुश्मनों के मनोबल को पस्त कर देने वाला सेना का ऑफिसर ही इस पोस्ट तक पहुंचता है.

नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) और कंबाइंड डिफेंस सर्विसेस (सीएडीएस) की परीक्षा पास करने के बाद ही कोई ऑफिसर जनरल पद तक पहुंच सकता है. जो ऑफिसर जनरल के पद तक पहुंचता है वहीं थल सेना प्रमुख बनता है.

दरअसल, एनडीए और सीएडीएस की कड़ी परीक्षा पास करने के बाद सीधे तौर पर सेना में ऑफिसर रैंक की बहाली होती है. भारतीय सेना में कमीशन अधिकारी की सबसे पहली पोस्ट होती है- लेफ्टिनेंट. अगर लेफ्टिनेंट का काम अच्छा रहा है तो फिर उसे तरक्की देकर कैप्टन बनाया जाता है. उसके बाद का पद है मेजर का. अगर काम अच्छा है तो तरक्की देने का ये सिलसिला चलता रहता है तब बारी आती है लेफ्टिनेंट कर्नल की. उसके बाद कर्नल बनाया जाता है. फिर उसे तरक्की देकर ब्रिगेडियर बनाया जाता है. ये काफी बड़ा ओहदा है, लेकिन तरक्की पाने के पैमाने अभी भी खत्म नहीं हुए हैं. इसके बाद मेजर जेनरल बनाया जाता है. फिर दूसरा सबसे बड़ा ओहदा लेफ्टिनेंट जेनरल का होता है. एक वक्त में सेना में कई लेफ्टिनेंट जेनरल होते हैं. इसके बाद अब सिर्फ एक ही पोस्ट बचती है और वो है- जनरल या सेना प्रमुख. यकीनी बात है कि ये पोस्ट सबसे काबिल ऑफिसर को दी जाती है. लेकिन सेना के अधिकारियों के रैंक से साफ है कि एनडीए और सीएडीएस पास करने वाला हर अधिकारी सेना अध्यक्ष बनने की कतार में खड़ा हो जाता है.

कैसे होता है आर्मी चीफ का चुनाव

- सुरक्षा स्थिति, जरूरतों के मुताबिक और मौजूदा चीफ रिटायर्ड हो जाने के बाद नए की नियुक्ति होती है.

- चीफ की नियुक्ति के में वरिष्‍ठता या सीनियॉरिटी को प्रमुखता दी जाती है.

- अप्‍वाइंटमेंट्स कमेटी ऑफ द कैबिनेट (एसीसी) का निर्णय इस मामले में अंतिम होता है.

- एसीसी में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षा मंत्री शामिल होते हैं.

- करीब 4-5 महीने पहले आर्मी चीफ के अप्‍वाइंटमेंट की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

- रक्षा मंत्रालय की ओर से लेफ्टिनेंट जनरल के प्रोफेशनल प्रोफाइल मंगवाए जाते हैं.

- सर्विस हेडक्‍वार्टर की ओर से योग्‍य उम्‍मीदवारों का डेटा आगे भेजा जाता है.

- इस डेटा में उनकी उपब्धियों के अलावा उनके ऑपरेशनल अनुभव को भी शामिल किया जाता है.

- डेटा को मंत्रालय और रक्षा मंत्री की ओर एसीसी के पास विचार और चयन के मकसद के लिए भेजा जाता है.

- नए आर्मी चीफ के नाम का ऐलान दो या तीन माह पहले ही कर दिया जाता है.

- चीफ ऑफ आर्मी स्‍टाफ का कार्यकाल तीन साल का होता है.

- इस पद पर 3 साल सेवा देने या 62 साल की उम्र तक ही कोई आर्मी ऑफिसर सेवा दे सकता है.

- इसके अलावा अगर चीफ की उम्र 62 साल हो रही है तो फिर वह तीन साल से पहले भी रिटायर हो जाते हैं.

- इसके लिए ऑफिसर का शारीरिक और मानसिक तौर पूरी तरह फिट होना जरूरी है.

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