Himachal Pradesh Results 2022: हिमाचल प्रदेश चुनाव को लेकर आए नतीजों में एक बार फिर प्रदेश की सियासी बदलाव की परंपरा बरकरार रही. कांग्रेस की मेहनत इस बार रंग लाई. सूबे की 68 विधानसभा सीटों के लिए 8 दिसंबर को हुई मतगणना में कांग्रेस ने बीजेपी पर बढ़त बनाकर जीत हासिल कर ली है. चुनाव परिणाम से साफ हो गया है कि प्रदेश में इस बार कांग्रेस की सरकार बनेगी. हालांकि एक बात गौर करने वाली है कि हिमाचल प्रदेश में जीत हार भले ही किसी भी पार्टी की हुई हो, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ठाकुरों को दबदबा रहा है.


हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में अब तक कुल छह मुख्यमंत्री (Chief Minister) हुए हैं, जिनमें से पांच बार राजपूत (Rajput) जबकि एक बार ब्राह्मण (Brahmin) का चेहरा रहा है.


हिमाचल में सीएम की कुर्सी किसके पास?


हिमाचल प्रदेश में अब तक सीएम की कुर्सी पर बैठे चेहरों में राजपूत जाति का खास प्रभाव रहा है. पिछले आंकड़ों से भी साफ है कि प्रदेश में अब तक 6 मुख्यमंत्रियों में पांच ठाकुर यानी राजपूत जाति से ही रहे. डॉ. यशवंत सिंह परमार 1952 में प्रदेश के पहले सीएम बने और लगातार चार कार्यकाल तक सत्ता में रहे. हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह 6 बार सीएम बने और 22 सालों तक सत्ता पर काबिज रहे. 


अब तक सीएम की कुर्सी पर कौन-कौन रहे?


यशवंत सिंह परमार और वीरभद्र सिंह के अलावा ठाकुर रामलाल, प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर भी राजपूत जाति से ही ताल्लुक़ रखते हैं. बीजेपी ने शांता कुमार को दो बार मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन वह कभी 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. शांता कुमार ब्राह्मण जाति से ताल्लुक़ रखते हैं और हिमाचल प्रदेश के पहले ग़ैर राजपूत सीएम थे. उन्हें हिमाचल में ठाकुर मुख्यमंत्रियों के बीच अपवाद के रूप में देखा जाता है.


हिमाचल में किस जाति की कितनी आबादी?


हिमाचल क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज़ से छोटा प्रदेश है. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की आबादी करीब 70 लाख है. यहां करीब 50 फीसदी आबादी सवर्णों की है. इनमें से करीब 32 फ़ीसदी से कुछ अधिक राजपूत और करीब 18 फ़ीसदी ब्राह्मण हैं. यहां करीब 25 फ़ीसदी अनुसूचित जाति, 5.71 फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति, 13.52 फ़ीसदी ओबीसी समुदाय से आते हैं.


सीएम की कुर्सी पर ठाकुरों का प्रभाव क्यों?


राजनीति के जानकार मानते हैं कि हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में राजपूत (Rajput) और ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखने वाले करीब 50 फीसदी लोग हैं. ऐसा में इनका दबदबा है. राज्य में दलित की संख्या करीब 25 फ़ीसदी जरूर है, लेकिन ये आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं. इनके पास अपनी जमीन भी नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि ठाकुर एकजुट हो जाते हैं, ब्राह्मण भी एकजुट रहते हैं, लेकिन यहां दलित बंटे हुए नजर आते हैं. दलितों से कोई बड़ा नेता भी नहीं है. ठाकुरों के प्रभाव को लेकर एक वजह और बताई जाती है कि हिमाचल में यूपी और बिहार की तरह कोई सामाजिक आंदोलन खड़ा नहीं हुआ.


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