हरिवंश राय बच्चन जन्मदिन विशेष: 27 नवंबर 1907 को हिन्दी साहित्य जगत के बगीचे में हरिवंश राय बच्चन नाम का एक ऐसा फूल खिला जो माधुर्य, सौंदर्य और सुगंध से भरपूर है. उनकी रचनाएं शिष्ट भी है और विशिष्ट भी. सुगंध उनकी रचनाओं का सत्यम है. माधुर्य उनकी रचनाओं का शिवम है. सौंदर्य उनकी रचनाओं का सुंदरम है. इस प्रकार हरिवंश राय बच्चन की कविताओं में इलाहाबाद (प्रयागराज) का संगम दिखाई देती है.
हरिवंश राय बच्चन की रचनाएं जीवन दर्शन के गहरे रहस्यों को टटोलती है. उनकी रचनाएं मनुष्य के चरमराते हौसलों को स्थाई संबल देती है. उनकी रचनाएं प्रेम के सूक्ष्म स्फुरण को शब्द को जरिए इस तरह बयां कर देती है कि इश्क को भी गहरा इश्क हो जाए.
डॉ बच्चन का काव्य संसार अद्भुत था. उनसे पहले किसी अन्य कवि की कविताओं में संवेदनाओं का शब्दों के साथ इतना गहरा संबंध नहीं दिखाई पड़ता. एक कवि प्रेम को कहां-कहां और कैसे-कैसे गढ़ सकता है इसे जानना हो तो हरिवंश राय बच्चन की ‘मिलन यामिनी’ ‘निशा निमंत्रण’ ‘एकांत संगीत‘ जैसे काव्य संग्रह को पढ़कर जाना जा सकता है.
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में और चारों ओर दुनिया सो रही थी। तारिकाऐं ही गगन की जानती हैं जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे अधजगा सा और अधसोया हुआ सा रात आधी खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने
कालजय रचना मधुशाला
हरिवंश राय बच्चन को सबसे अधिक लोकप्रियता ‘मधुशाला’ की वजह से मिली. यह बच्चन की दूसरी रचना थी और 1935 में लिखी गई थी. इसके बाद 1936 में ‘मधुबाला’ और 1937 में ‘मधुकलश’ प्रकाशित हुई. इन तीनों रचनाओं ने हिंदी साहित्य में हालावाद की नींव डाली. हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखी गई मधुशाला हिंदी काव्य की कालजयी रचना मानी जाती है जिसमें उन्होंने सूफीवाद का दर्शन कराते हुए प्रेम, सौंदर्य, पीड़ा, दुख, मृत्यु और जीवन के सभी पहलुओं को अपने शब्दों में पेश किया है. वैसे तो मधुशाला प्रतीकों का विशाल महल जैसा है लेकिन वह महल भी हरिवंशराय बच्चन ने आम लोगों के हृद्य पर खड़ा किया है. बच्चन की मधुशाला कितने हाथों से गुजरती हुई कितनी पीढ़ियों तक पहुंची इसका जवाब देना जरा कठिन होगा. लेकिन यह कालजय रचना हमेशा प्रेरणा देती रही
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला, अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला, बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले पथिक न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला
मधुशाला के कई रंग हैं और उन्ही रंगों में एक रंग सांप्रदायिक सद्भाव का है. आज भी देश में जब मंदिर-मस्जिद को लेकर कुछ लोग माहौल खराब करने का प्रयास कर रहे हैं तो ऐसे में आज भी बच्चन की मधुशाला समानता की हिमायत करती है
धर्मग्रंथ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला.
हिम्मत देती है उनकी कविता
हरिवंश राय बच्चन की कविता किसी भी व्यक्ति के टूटते हौसलों को पुनः संगठित करने का पूर्ण सामर्थ रखती है. ‘अग्निपथ’ 'साथी साथ न देगा दुख भी', 'नीड़ का निर्माण', 'जो बीत गई सो बात गई' जैसी कविताएं पाठक के सामने एक सकारात्मक दृश्टिकोण रखती है. हारे हुए व्यक्ति को एक बार फिर लड़ने के लिए उठ कर खड़ा होने की प्रेरणा देती है.
वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े एक पत्र छांह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ
जिंदगी के आपाधापी में वक्त तलाशते हुए व्यक्ति की कविता
जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोंच सकूं जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला
हरिवंश राय बच्चन की लिखी इन पंक्तियों में जीवन से जुड़ी आपाधापी के बारे में बड़ी संजीदगी से बताया गया है. हम जो जीवन जी रहे हैं. जो व्यस्तताएं हैं उसमें यह सोचने का समय भी नहीं कि जो हम कर रहे हैं वह सही है या गलत.
दहेज में मांगी थी किताबें
हरिवंश राय बच्चन की दो शादियां हुई. पहली पत्नी कू मृत्यु के बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया. पहले विवाह के समय का एक किस्सा बहुत रोचक है. मई 1926 में उनका ब्याह श्यामा देवी के साथ हुआ. उस वक्त बच्चन महज 19 साल और श्यामा देवी करीब 14 साल की थीं. मगर छोटी उम्र में भी युवा बच्चन में अध्ययन के प्रति गहरा अनुराग था. उन्होंने अपने ससुराल वालों को शादी के लिए एक शर्त रखी. सबको लगा वह बहुत सारे पैसे या सोने-चांदी मांगेंगे लेकिन 'विवाह में आशीर्वाद या स्नेह स्वरूप उपहार में उन्होंने सिर्फ किताबें ही मांगी. साथ ही कहा कि अगर किताबों के अलावा कुछ भी भेंट दी जाएगी तो वह उसे न लेते हुए विनम्रता से लौटा देंगे.
छायावादी कवि हरिवंश राय बच्चन की रचनाएं हमेशा आशा का दीपक जलाए हुए रही. उनकी कविता वास्तविकता का दर्पण है जिसमें जिंदगी की सच्चाई दिखाई देती है. बच्चन व्यक्तिवादी गीत कविता या हालावादी काव्य के अग्रणी कवि थे. बच्चन ने उमर ख़्य्याम की रुबाइयों, सुमित्रा नंदन पंत की कविताओं और नेहरू के राजनीतिक जीवन पर भी किताबें लिखी. उन्होंने शेक्सपियर के नाटकों का भी अनुवाद किया.