नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने आज ये माना कि निजता के कुछ पहलू मौलिक अधिकार के दायरे में हैं. हालांकि, केंद्र के सबसे बड़े वकील एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने निजता से जुड़े हर पहलू को मौलिक अधिकार की तरह देखे जाने को गलत बताया. उन्होंने कहा कि निजता के हर मामले को अलग-अलग देखने की ज़रूरत है.

वेणुगोपाल ने ये बातें निजता के अधिकार पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच के सामने कहीं. इससे पहले सरकार ने निजता को मौलिक अधिकार मानने से मना कर दिया था. एटॉर्नी जनरल की इन दलीलों पर हैरानी जताते हुए बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा-अगर आपका यही मानना है तो मामला अभी बंद किया जा सकता है.

इस मामले की सुनवाई आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के चलते शुरू हुई है. इन याचिकाओं में आधार के लिए बायोमेट्रिक जानकारी लेने को निजता का हनन बताया गया है. सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ये तय करने बैठी है कि निजता मौलिक अधिकार है या नहीं.

जवाब में आज एटॉर्नी जनरल ने आधार योजना को सामाजिक न्याय से जोड़ा. उन्होंने कहा- "आधार योजना से सही मायनों में गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार करोड़ों लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. कुछ लोग निजता का हवाला देकर बायोमेट्रिक जानकारी नहीं देना चाहते. इसके चलते करोड़ों लोगों को भोजन और दूसरी ज़रूरी सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता."

उन्होंने ये दावा भी किया कि वर्ल्ड बैंक जैसी संस्था भी आधार योजना की सराहना कर चुके हैं. इस पर बेंच ने उन्हें टोकते हुए कहा, "आप निजता के सवाल की बजाय आधार योजना पर दलील रख रहे हैं. अभी उस पर सुनवाई नहीं हो रही है."

इसके बाद वेणुगोपाल ने याचिकाओं का विरोध करते हुए निजता को चंद बड़े लोगों से जुड़ा सवाल बताया. उन्होंने कहा कि विकसित देशों में लोगों की निजता का दायरा बड़ा है. लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में लोगों को एक सीमा तक ही निजता दी जा सकती है.

बेंच ने इस दलील से असहमति जताते हुए कहा- "निजता को चंद बड़े लोगों का सवाल नहीं कह सकते. लोगों के कल्याण के नाम पर अगर झुग्गी बस्तियों में नसबंदी अभियान चले तो क्या ये निजता का हनन नहीं होगा?"

बात को आगे बढ़ाते हुए एटॉर्नी जनरल ने कहा- "निजता का अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आता है. इसे पूरी तरह से अलग मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता. क़ानूनी ज़रूरत के मुताबिक जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को रोका जाता है. इसकी संविधान में ही व्यवस्था है."

आज वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी 4 गैर बीजेपी शासित राज्यों कर्नाटक, प. बंगाल, पंजाब और पुदुच्चेरी की तरफ से दलीलें रखीं. उन्होंने कहा, "ये सही है कि 50 और 60 के दशक में दिए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना था. लेकिन तब कोर्ट ने भविष्य में आने वाली टेक्नोलॉजी के बारे में विचार नहीं किया. आज तकनीक के दौर में निजी डाटा को खतरा है. सिर्फ सरकार ही नहीं कंपनियां भी लोगों के निजी डाटा का इस्तेमाल कर रही हैं."

सुनवाई कल भी जारी रहेगी. कल आधार बनाने वाली संस्था UIDAI की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलीलें रखेंगे.