नई दिल्ली: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सिर्फ एक व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि वह एक सोच हैं अपने जीवन को मानव समाज और देश को समर्पित करने की. गांधी एक ताकत हैं अहिंसा की, सादगी की, अपरिग्रह की, श्रम की, नैतिकता की, स्वशासन की, स्वावलम्बन की, स्वदेशी विकेन्द्रीकरण की, शोषणमुक्त व्यवस्था की, सहयोग की और समानता की. गांधी एक विरोध का भी नाम है, वह विरोध जो अन्याय के खिलाफ है, अत्याचार खिलाफ है, उत्पीड़न के खिलाफ है, भ्रष्ट और शोषण करने वाली व्यवस्थाओं के खिलाफ है.
गांधी और उनके विचार कितने प्रासंगिक है इसको लेकर अक्सर बहस चलती रहती है. आज जब देश में एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम की सियासत हो रही है, हर तरफ साम्प्रदायिक ताकतों का बोलबाला है, जब 'भीड़तंत्र' लोकतंत्र पर हावी हो रही है, गो हत्या के शक मात्र से लोगों को भीड़ द्वारा निशाना बनाया जा रहा है, अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों की राजनीति आज भी राजनीतिक दल कर रहे हैं, ऐसे वक्त में बापू इन विषयों पर क्या सोचते थे इस पर चर्चा करना बेहद जरूरी हो जाता है.
महात्मा गांधी का मानना था कि किसी भी सभ्यता का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि वह अपने अल्पसंख्यकों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करती है. दरअसल राष्ट्रपिता गांधी पूरी जिंदगी देश में साम्प्रदायिक एकता की हिमायत करने में गुजार दी और अंत में उसी साम्प्रदायिक ताकतों के हाथों शहादत को प्राप्त हुए.
साम्प्रदायिक एकता पर गांधी के विचार उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से प्रभावित
साम्प्रदायिक एकता पर महात्मा गांधी के विचार उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं पालन पोषण से प्रभावित था. गांधी के पिता करमचंद गांधी एक वल्लभाचार्य वैष्णव थे. उनका समुदाय किसी दूसरे समुदाय के साथ भोजन आदि करने को लेकर सख्त था लेकिन गांधी जी के परिवार में ऐसा माहौल नहीं रहा. उनके पिता राजकोट के दिवान थे. उनके घर हर समुदाय के लोगों का आना-जाना लगा रहता था. वहीं गांधी जी की मां पुतलीबाई प्रणामी पंथ में आस्था रखती थी. प्रणामी सम्प्रदाय एक हिन्दू सम्प्रदाय है जिसमे श्री कृष्ण को मानने वाले अनुयायी शामिल है. यह सम्प्रदाय अन्य धर्मों की तरह बहुईश्वर में विश्वास नहीं रखता. इसकी स्थापना प्राणनाथ स्वामी और उनके शिष्य महाराज छत्रसाल ने किया. प्रणामी पंथ कहता है कि पुराण, कुरान और बाइबिल इश्वर तक पहुंचने के वैकल्पिक मार्ग हैं.
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इस तरह जहां एक ओर महात्मा गांधी को पिता के कारण अलग-अलग समुदाय को नजदीक से देखने का मौका मिला तो वहीं मां पुतलीबाई की आस्था से यह जानकारी मिली कि इश्वर तक पहुंचने के कई वैकल्पिक मार्ग हैं.
लंदन में महात्मा गांधी का अनुभव
1888 में कानून की पढ़ाई करने महात्मा गांधी इंग्लैंड गए. इंग्लैंड में उनके भारतीय और हिन्दू होने की वजह से लोगों को लगता था कि उन्हें हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों के बारे में सभी जानकारियां होगी लेकिन बापू ने इन्हें नहीं पढ़ा था. फिर महात्मा गांधी ने निर्णय लिया कि वह सभी धर्मों की किताबों को पढ़ेंगे. उन्होंने एडविन ऑर्नल्ड द्वारा अनुवादित 'गीता' पढ़ी. एडविन द्वारा ही लिखित 'लाइट ऑफ एशिया' भी पढ़ी जो बौद्ध धर्म पर आधारित थी. इसके बाद उन्होंने बाइबल और जोराष्ट्रेयनिज्म (पारसी शास्त्र) पर भी किताबें पढ़ी.
गांधी का धर्म को लेकर नजरिया
अलग-अलग धर्मों के अच्छे गुणों को बटोरकर गांधी ने धर्म संबंधी अपना एक अलग दृष्टिकोण तैयार किया. गांधी का धर्म किसी एक धर्म विशेष के अनुरुप नहीं था. गांधी उस धर्म में विश्वास रखते थे जो सभी धर्मों से उपर है. उनके धर्म में सभी जीवों के लिए सहानुभूति थी, इसलिए उनका प्रिय भजन है 'वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे'
हिन्दू-मुस्लिम एकता पर देते थे बल
महात्मा गांधी से एक बार प्रश्न किया गया कि क्या भारत मुसलमानों के यहां आने के बाद एक राष्ट्र के रूप कायम रहा ? इसके उत्तर में बापू कहते हैं, ''हिन्दुओं, मुसलमानों, पारसियों, और इसाइयों जिन्होंने भी भारत को अपने देश के रूप में अपनाया वह सभी मिलकर भारत बनाते है. महात्मा गांधी 'एक राष्ट्र एक धर्म' के सिद्धांत पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहते हैं कि संसार के किसी भी हिस्से में एक धर्म और एक राष्ट्रीयता नहीं हो सकती.
गो वध के मुद्दे पर गांधी के विचार
गो वध के मद्दे को वह दोनों धर्मों (हिन्दू और मुसलमान) बीच शत्रुता का सबसे बड़ा कारण बताते हैं. यह समस्या किसी भी रूप में हिंसा की शक्ल न ले इसके लिए गांधी दोनों पक्षों को समझाते हैं. वह हिन्दुओं से कहते हैं कि वह अपने मुसलमान भाइयों को अपने धर्म में गाय के महत्व के बारे में समझाने का प्रयास करें और कहें कि वो इसका वध न करें, यदि फिर भी कोई मुसलमान यह मानने को तैयार न हो तो गांधी कहते हैं,'' यदि मैं गाय के प्रति अतिरिक्त करुणा भाव से भरा हुआ हूं तो मैं उसकी रक्षा के लिए अपनी जान दे दूंगा पर अपने भाई की जान नहीं लूंगा.''
गांधी जी हमेशा मानते थे कि दोनों पक्ष को एक-दूसरे के धर्म के बारे मे जानना चाहिए तभी संबंध अच्छे बन सकते हैं. वह कहते हैं कि हिन्दुओं को 'कुरान' पढ़नी चाहिए. उसमें ऐसे असंख्य बातें है जो हिन्दुओं को स्वीकार्य है. वहीं मुसलमानों को भी 'भगवद गीता' पढ़नी चाहिए जिसमें ऐसे अनगिनत उदाहरण है जिसे कोई भी मुसलमान नजरअंदाज नहीं कर सकता. उनका मानना है था 'हृदय की एकता' सांप्रदायिक एकता के केंद्र में है.
आज भारत समेत पूरे विश्व में जब साम्प्रदायिकता आतंक फैसलाए हुए है ऐसी स्थिति में राष्ट्रपिता के विचार आज भी प्रासंगिक हैं. आज भी देश को महात्मा गांधी के इन विचारों पर चलने की जरूरत है.
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