Supreme Court On Freebies Scheme: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि चुनाव के दौरान उसकी योजनाओं की घोषणा और उससे होने वाले अर्थव्यवस्था (Economy) को नुकसान को लेकर संसद (Parliament) में विचार होना ही बेहतर है. हालांकि, कोर्ट ने एक बार फिर मामले में अपनी तरफ से कमिटी बनाने का संकेत देते हुए कहा कि कमिटी के सुझाव संसद को मामले पर विचार करने में मदद दे सकते हैं.


मामले की सुनवाई कर रहे रही तीन जजों की बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस एन वी रमना (N V Ramana) ने यह भी कहा कि आज की तारीख में कोई भी पार्टी मुफ्त की घोषणाओं (Freebies Scheme) को रोकना नहीं चाहती.


'कोई हांगकांग घुमाने का वादा करे तो क्या होगा'
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा, "अगर कोई पार्टी यह वादा करे कि वह चुनाव जीतने के बाद लोगों को सिंगापुर, हांगकांग या बैंकॉक ले जाएगी, तो क्या चुनाव आयोग को इसमें दखल नहीं देना चाहिए? चुनाव आयोग मामले में अपने हाथ खड़े नहीं कर सकता." जस्टिस रमना ने आगे कहा, "लेकिन हमें यह भी देखना होगा की नाव या साइकिल जैसी छोटी-छोटी चीजें दूरदराज के इलाकों में रह रहे लोगों के जीवन से सीधे जुड़ी हैं. इनसे उन्हें आजीविका कमाने या अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है. इसलिए इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि कौन सी सुविधाएं सरकार की तरफ से उपलब्ध कराना जरूरी है और क्या चीजें गैरजरूरी मुफ्तखोरी हैं."


'टैक्सपेयर पर न बढ़े बोझ'
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के लिए पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह में कहा, "हम यह नहीं कह रहे हैं कि पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सुविधाएं सरकार को नहीं देनी चाहिए. लेकिन बिना राज्य की आर्थिक हालत की चिंता किए अगर कोई पार्टी करोड़ों रुपए की योजना का वादा कर रही है, तो इससे सिर्फ करदाताओं पर बोझ बढ़ेगा. करदाताओं के पैसों की बर्बादी किसी पार्टी को करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. पार्टी का मकसद सिर्फ चुनाव जीतना होता है. उसे किसी और बात की चिंता नहीं होती. अगर चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का सही तरह से इस्तेमाल करे या उसे अतिरिक्त शक्तियां कानून के जरिए दे दी जाएं, तो इन बातों पर लगाम लग सकती है.


मामला चुनावी घोषणा तक सीमित
इस पर जजों ने कहा इसका मतलब यह है कि आप अपनी दलीलों को चुनाव के दौरान होने वाली घोषणा और सीमित रखना चाहते हैं. उसके बाद सरकार क्या करती है, यह आपकी याचिका का विषय नहीं? 8स पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उन्होंने चुनाव के दौरान होने वाले घोषणाओं का ही विषय उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एस सुब्रमण्यम बालाजी मामले में दिए गए फैसले में पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र को नियंत्रित करने को लेकर बात कही थी. लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर बहुत ज्यादा काम नहीं किया.


सिब्बल और सिंघवी की दलीलें
मामले में वरिष्ठ वकील और सांसद होने की हैसियत से कोर्ट की सहायता कर रहे कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मसला वित्त आयोग पर छोड़ देना चाहिए वित्त आयोग राज्यों को फंड आवंटित करता है अगर किसी राज्य का वित्तीय घाटा 3% से ऊपर है और वह लगातार पोस्ट की योजनाओं को चलाएं जा रहा है तो आयोग उसके फंड में कटौती कर सकता है. 


आम आदमी पार्टी के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वह मामले में कोर्ट की दखल का विरोध कर रहे हैं लोगों को सुविधाएं पहुंचाना सरकार का कर्तव्य होता है लेकिन अगर फिर भी सुप्रीम कोर्ट किसी कमेटी का गठन करना चाहता है उसमें राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी रखा जाए.


बुधवार को जारी रहेगी सुनवाई
केंद्र सरकार के लिए पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "समस्या यह है कि कोई साड़ी बांटता है, कोई टीवी. लेकिन इसका बोझ टैक्स पेयर पर पड़ता है. सवाल यह है कि क्या कोर्ट इसे खामोशी से देखेगा?" मामले में जिरह लंबी खिंंचती देखकर चीफ जस्टिस ने इसे बुधवार को भी जारी रखने की बात कही उन्होंने वकीलों को यह भी याद दिलाया कि वह इसी हफ्ते रिटायर हो रहे हैं ऐसे में अगर जिरह लंबी चली तो उनके लिए आदेश लिखवा पाना मुश्किल हो जाएगा.


डीएमके को कड़ी फटकार
मुफ्त की राजनीति लंबे समय से तमिलनाडु में चुनाव जीतने का एक बड़ा आधार रही है. ऐसे में वहां के नेता कोर्ट की कार्रवाई पर काफी बयानबाजी कर रहे है. चीफ जस्टिस ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई. उन्होंने मामले में कुछ कहने की कोशिश कर रहे तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके के वकील को रोक दिया.


जस्टिस रमना (Justice N V Ramana) ने सख्त लहजे में कहा, "मैं चीफ जस्टिस के पद पर होकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. लेकिन आपके राज्य में ऐसा जताया जा रहा है जैसे सारी समझदारी एक ही पार्टी या एक ही व्यक्ति के पास है. वहां सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के लिए बहुत कुछ कहा जा रहा है. ऐसा नहीं है कि हमारी आंख बंद है. हमें दिखाई नहीं दे रहा."


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