नई दिल्ली: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में देश की सबसे बड़ी नक्सल कार्रवाई हुई है. यह कार्रवाई करने में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में महाराष्ट्र पुलिस की स्पेशल टीम 'सी-60' को सफलता मिली है. 'सी-60' ने दो ऑपरेशन्स के दौरान 48 घंटों में 37 माओवादियों को मौत के घाट उतार दिया. रविवार को 16 नक्सली मारे गए थे और उसके बाद अब 21 और नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि हुई है. कई शव गढ़चिरौली जिले में इंद्रावती नदी से बरामद किये गये हैं. एक अधिकारी का कहना है कि शव रविवार को हुई मुठभेड़ के दौरान भाग निकलने वाले नक्सलियों के हो सकते हैं. शायद इनकी मुठभेड़ में घायल होने के बाद मौत हो गई होगी.

क्या है ये कमांडो 'सी-60' फोर्स?

'सी-60' एक खास तरह की फोर्स है जिसे जंगल युद्ध के लिए ही प्रशिक्षित किया गया है. इसके जवान हैदराबाद के ग्रे-हाऊंड्स, मानेसर के एनएसजी और पूर्वांचल के आर्मी के जंगल वॉरफेयर स्कूल से ट्रेनिंग लेकर आये हैं. इनके हथियार भी बाकी पुलिस फ़ोर्स के अलग होते हैं. 'सी-60' फोर्स में ज्यादातर गढ़चिरौली के ही आदिवासी युवा शामिल हैं जिन्हें वहां के जंगलों के बारे में पूरी जानकारी है.

कैसे शुरु हुई कमांडो 'सी-60' फोर्स की कल्पना

नक्सली ज्यादातर जंगल के ही युवा होते थे ऐसे में पुलिसवालों को उनसे निपटने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. इसी से पैदा हुई 'सी-60' फोर्स की कल्पना. साल 1990 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के आसपास के 60 कमांडोज की एक बेंच बनाई गई. ये कमांडों वहीं पले बढ़े थे इसलिए वहां की भाषा और संस्कृति को अच्छी तरह से समझते थे. वहीं से इसका नाम पड़ा 'सी-60'. हालांकि इनकी संख्या अब 100 के आसपास हो गई है लेकिन अभी इन्हें 'सी-60' की ही पहचान मिली हुई है.

'सी-60' के इन जवानों को इतनी खास ट्रेनिंग दी जाती है कि इनके लिए घंटों बिना खाने और पानी के जंगल में चलना सामान्य बात होती है. चूंकि ये जवान जंगल के ही समूह से निकले हैं इसलिए कई सारे नक्सली इनके परिवार के सदस्य और रिश्तेदार भी होते हैं. ऐसे में इन जवानों को पुलिस की नौकरी छोड़ने की धमकियां भी मिलती रहती हैं. बता दें कि गढ़चिरौली में सुरक्षाबलों के जवान ही नहीं, बल्कि स्थानीय नागरिक भी नक्सलियों के निशाने पर रहते हैं.

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