अफ़गानिस्तान तालिबान पर कब्ज़ा चुका है. लगातार जो तस्वीर सामने आ रही है वह तालिबान के ज़ुल्म की कहानी बयां कर रही है और इसी वजह से लोग अफगानिस्तान से निकलकर दूसरे देशों की तरफ भाग रहे हैं. लेकिन भारत का तालिबानी आतंकियों से पहला एनकाउंटर अब से करीब 22 साल पहले हुआ था. साल 1999 में जब आईसी 814 को आतंकियों ने हाईजैक कर अफगानिस्तान के कंधार में उतारा तो उन आतंकियों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी थी तालिबानी आतंकियों के कंधों पर. आज भी वह तस्वीरें डराती है लेकिन क्या कुछ हुआ था साल 1999 में कंधार हाईजैक के दौरान इस बारे में आईसी 814 को उड़ाने वाले कैप्टन देवी शरण ने अपनी यादें ताजा की. कैप्टन देवी शरण के मुताबिक साल 1999 के तालिबान और आज के तालिबान में कोई खास अंतर नहीं दिखता.


कैप्टन देवी शरण आईसी 814 जहाज के कप्तान थे. आतंकियों ने जब IC 814 को हाईजैक किया तो उस दौरान कैप्टन देवी शरण के गर्दन पर हथियार से हमला कर कर उनसे जहाज को कंधार की तरफ ले जाने को कहा. पैसेंजर्स की जान को खतरा देखते हुए कैप्टन ने एटीसी से संपर्क साधा और जहाज को कंधार की तरफ ले गए. कंधार पहुंचने पर उनके सामने जो तस्वीरें आई उसने पहली बार खूंखार तालिबान का चेहरा दुनिया के सामने लाया.


तालिबान के आतंकी जहाज के करीब पहुंचकर आतंकियों के मददगार के तौर पर सामने आए. जहाज में मौजूद आतंकियों ने तालिबानी आतंकियों से बात की और उनको तालिबान की तरफ से हर संभव मदद मुहैया कराई गई. तालिबानी आतंकी अपने हाथों में हथियार लेकर लगातार विमान के आसपास घूमते रहे. उन तालिबानी आतंकियों को देखकर लग रहा था कि उनके लिए किसी की जान की कोई कीमत नहीं है.


कैप्टन देवी शरण के मुताबिक आज जो तस्वीरें सामने आ रही है उन तस्वीरों ने उनको 20 साल पुरानी उन तस्वीरों की याद दिला दी है जो होने खुद कंधार में आईसी 814 के कॉकपिट में बैठकर देखी थी. तब भी तालिबानी आतंकीयों का खौफ इसी तरह था हालांकि फर्क इतना है कि उस दौरान तालिबानी आतंकियों की संख्या आज की संख्या के मुकाबले कुछ कम थी. लेकिन तब भी वो उतने ही खूंखार नजर आ रहे थे जितने अभी दिख रहे हैं.


कैप्टन देवी शरण के मुताबिक तालिबान भले ही आज कह रहा हो कि वह बदल गया है लेकिन जो तस्वीरें वहां से सामने आ रही है उसको देख कर तो नहीं लग रहा क्योंकि तब भी तालिबानी इसी तरह की बातें कर रहे थे और आज भी उनके अल्फाज कुछ वैसे ही है. यानी कुल मिलाकर अफगानिस्तान में 20 साल बाद भी कुछ नहीं बदला.


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