नई दिल्ली: "बेटी हमेशा बेटी होती है. बेटा तो अक्सर अपनी शादी तक ही बेटा रहता है." इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने आज बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार दिलाने में एक बड़ी बाधा को दूर कर दिया. कोर्ट ने कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार कानून में हुए बदलाव से पहले किसी लड़की के पिता मर गए हों, तो इससे उसे पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार पाने से वंचित नहीं किया जा सकता.
9 सितंबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार कानून में किए गए संशोधन के जरिए बेटियों को पुश्तैनी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया था. इससे पहले पिता की संपत्ति में लड़कियों को बहुत सीमित अधिकार हासिल था. वह सिर्फ पिता की उस संपत्ति पर दावा कर सकती थीं, जो पिता ने खुद अर्जित की हो, वह भी तब जब पिता उसका कोई बंटवारा किए बिना मर गए हों. पिता की पैतृक यानी खानदानी संपत्ति में उनको कोई हक नहीं था. जबकि बेटों को कोपार्सनर का दर्जा हासिल था, मतलब उन्हें परिवार में जन्म लेने के आधार पर उस संपत्ति पर हक मिल जाता था.
2005 में कानून में किए गए बदलाव के जरिए लड़कियों को भी पुश्तैनी संपत्ति में कोपार्सनर का दर्जा दिया गया. लेकिन जिन लड़कियों के पिता कानून लागू होने की तारीख, 9 सितंबर 2005 से पहले गुजर चुके थे, उन्हें इस कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा था. इस तरह के मामलों में बेटे, और बेटे के न होने की सूरत में भतीजे संपत्ति पर अपना पूरा दावा कर रहे थे.
अब कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि पिता की मृत्यु कभी भी हुई हो, इससे बेटी के अधिकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कानून लागू होने से पहले बेटी की मृत्यु हो चुकी हो, तब भी उसकी संतानें अपनी मां की तरफ से संपत्ति पर दावा कर सकती हैं.
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