2020 के दिल्ली दंगे के आरोपियों की जमानत याचिका का दिल्ली पुलिस ने कड़ा विरोध किया है. पुलिस ने कहा है कि यह अचानक भड़की हिंसा नहीं थी, देश में 'सत्ता परिवर्तन' के मकसद से एक सोची-समझी साजिश के तहत सब कुछ किया गया था. उमर खालिद और शरजील इमाम सहित 6 आरोपियों की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (31 अक्टूबर, 2025) को सुनवाई होनी है.

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 अक्टूबर, 2025) को दिल्ली पुलिस से पूछा था कि क्या वह इन आरोपियों के 5 साल से जेल में होने के आधार पर उन्हें रिहा करने के पक्ष में है? इसके जवाब में दाखिल विस्तृत जवाब में पुलिस ने कहा है कि इन आरोपियों ने तरह-तरह के आवेदन दाखिल कर खुद मुकदमे में देरी करवाई है, ताकि देरी के आधार पर जमानत पा सकें. अभी भी यह लोग सुप्रीम कोर्ट में दावा कर रहे हैं कि गवाहों की संख्या 900 है, लेकिन वास्तव में गवाह 100-150 ही होंगे.

'देश की अखंडता पर हमला'

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दिल्ली पुलिस ने कहा है कि इन लोगों पर UAPA कानून के तहत गंभीर आरोप हैं और पर्याप्त सबूत भी हैं. हिंसा के लिए जान बूझकर अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे का समय चुना गया था. भारत की संप्रभुता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने और 'सत्ता परिवर्तन' के लिए रची गई साजिश का दायरा सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं था. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, असम और कर्नाटक समेत पूरे देश में हिंसक गतिविधियां हुई थीं.

हाई कोर्ट कर चुका है रिहाई से इनकार

2020 दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर, शिफा उर रहमान और सलीम खान ने 5 साल जेल में रहने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट से जमानत मांगी है. इससे पहले 2 सितंबर को दिल्ली हाई कोर्ट ने 9 आरोपियों को जमानत पर रिहा करने से मना किया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि धरना-प्रदर्शन के नाम पर साजिश रचकर हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती. शरजील इमाम और उमर खालिद ने सांप्रदायिक आधार पर भड़काऊ भाषण दिए. उनका मकसद मुस्लिम समुदाय के लोगों को बड़े पैमाने पर लामबंद करना था.

53 लोगों की हुई थी मौत

फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोधी प्रदर्शन को लेकर हुई झड़पों में 53 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे. आरोप है कि इन आरोपियों ने दंगे भड़काने की साजिश रची थी. दिल्ली पुलिस ने इन पर दंगा, अवैध जमावड़ा, आपराधिक साजिश जैसी IPC की धाराओं के अलावा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (UAPA) की धाराओं में FIR दर्ज की है. अधिकतर आरोपियों पर कई FIR दर्ज हैं.

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