करवा चौथ का व्रत नहीं रखने पर एक पति ने कोर्ट में तलाक की अर्जी लगा दी, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया. पति ने करवा चौथ का व्रत न रखने को पत्नी की क्रूरता बताया है. वहीं, कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि करवा चौथ पर व्रत रखना या न रखना व्यक्तिगत पसंद का मामला है. व्रत नहीं रखना किसी भी तरह की क्रूरता नहीं है न ही इस आधार पर शादी तोड़ी जा सकती है. फिर भी कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी क्यों मंजूर कर ली?


कोर्ट का कहना है कि पत्नी ने पति के लिए व्रत नहीं रखा और पति ने याचिका में पत्नी से जुड़ी जो बातें बताई हैं, उससे लगता है कि पत्नी इस शादी में नहीं रहना चाहती और उसने पति के साथ जिस तरह का बर्ताव किया है उससे पति की भावनाएं आहत हुई होंगी.


करवाचौथ का व्रत नहीं रखने पर पति ने इसे पत्नी की क्रूरता बताया और ट्रायल कोर्ट पहुंच गया, जहां उनके तलाक को मंजूरी मिल गई. पत्नी ने क्रूरता बताए जाने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. मामले की सुनवाई जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्ण की बेंच ने की.


बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, 22 दिसंबर को बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा, 'व्रत रखना, पसंद का मामला है. अलग-अलग धार्मिक विश्वास रखना और कुछ धार्मिक कर्तव्यों का पालन नहीं करने को क्रूरता नहीं कहा जा सकता. रिवाजों के बीच रहते हुए महिला का उपवास से इनकार करना बताता है कि पत्नी के मन में पति के लिए कोई सम्मान नहीं है.' हालांकि, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखा है.


याचिका में क्या बोला पति?
पति का कहना है कि पत्नी ने व्रत इसलिए नहीं रखा क्योंकि पति ने उसके मोबाइल फोन का रिचार्ज नहीं करवाया था. पति का यह भी कहना था कि पत्नी छोटी-छोटी बातों पर नाराज हो जाती थी और ससुराल वालों से झगड़ा भी करती थी. पति ने बताया कि साल 2009 में उनकी शादी हुई थी और 2011 में पत्नी ने घर छोड़ दिया था. उस वक्त उनकी बेटी भी पैदा होने वाली थी.


पति का कहना है कि 2011 के अप्रैल महीने में पति को स्लिप डिस्क हुआ था. इस दौरान, पत्नी ने पति का ख्याल नहीं रखा और सिंदूर मिटा दिया एवं मंगलसूत्र निकाल कर सफेद सूट पहन लिया. पत्नी ने खुद को विधवा घोषित कर दिया. इसके बाद ही पति ने तलाक की याचिका दाखिल की थी.


क्या बोला कोर्ट
इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही करवा चौथ का व्रत न रखना तलाक का आधार नहीं हो सकता, लेकिन केस के बाकी तथ्यों को ध्यान में रखा जाए तो ट्रायल कोर्ट का फैसला सही है.


कोर्ट ने कहा कि पति के लिए पत्नी को विधवा के रूप में देखना दुखद होगा, जबकि वह जिंदा है और बीमार है. कोर्ट ने माना कि पत्नी ने 1 साल 3 महीने में ही ससुराल छोड़ दिया और सुलह की कोशिश भी नहीं की. कोर्ट ने माना कि पत्नी ने पति के प्रति क्रूरता की है और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के सब सेक्शन 1(ia) के तहत ट्रायल कोर्ट का तलाक का फैसला सही है.


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