विवादों में घिरे दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर हो गया है, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी वह कोई न्यायिक कार्य नहीं कर सकेंगे. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट में भी उन्हें न्यायिक कार्य से अलग कर दिया गया था.

जस्टिस वर्मा के घर में 14 मार्च को आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में जला हुआ कैश मिला था. 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने मामले की जांच के लिए 3 जजों की इन हाउस कमिटी बना दी थी. 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके ट्रांसफर की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी थी.

'जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य देने से मना किया गया'अब केंद्र सरकार ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर की अधिसूचना जारी कर दी है. केंद्र की अधिसूचना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी एक प्रेस रिलीज जारी की है. इसमें यह बताया गया है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य देने से मना कर दिया है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जताया विरोधध्यान रहे कि इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे जज के अपने यहां ट्रांसफर का विरोध कर रहा है. गुरुवार (27 मार्च) को इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष 5 दूसरे हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्षों के साथ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से मिले थे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने उन्हें आश्वासन दिया था कि ट्रांसफर के बाद भी जस्टिस वर्मा को न्यायिक कार्य नहीं करने दिया जाएगा.

जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर के लिए भी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनी गई. जजों ने याचिकाकर्ता से कहा कि जांच कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद चीफ जस्टिस आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाने पर भी विचार करेंगे. ऐसा ही आश्वासन गुरुवार को कॉलेजियम ने बार एसोसिएशन अध्यक्षों को भी दिया था.

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