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दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में केंद्र सरकार की साल 2013 की उन गाइडलाइंस को बरकरार रखा है, जिनमें कलर ब्लाइंडनेस और कमजोर दृष्टि वाले उम्मीदवारों को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और असम राइफल्स में भर्ती करने पर रोक लगाई गई है. गृह मंत्रालय ने फरवरी 2013 में यह नीति जारी की थी जिसमें कहा गया था कि भविष्य में ऐसे किसी भी उम्मीदवार को भर्ती नहीं किया जाएगा जिसकी दृष्टि दोषपूर्ण हो या जो कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित हो.

'गलत पहचान होने पर निर्दोष लोगों का होगा नुकसान'

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केंद्र सरकार ने अदालत में दलील दी कि CAPF और असम राईफल्स के जवानों को घातक हथियार दिए जाते हैं और उन्हें आतंकियों और उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होती है. ऐसे में रंगों की पहचान न कर पाना या नजर कमजोर होना उनके खुद के लिए, उनके साथियों के लिए और आम नागरिकों के लिए खतरा पैदा कर सकता है. गलत पहचान होने पर निर्दोष लोगों को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है.

केंद्र के नियमों को दी गई चुनौती

केंद्र सरकार के इस नीति को तीन भर्ती उम्मीदवारों ने चुनौती दी थी. ये तीनों CISF में कॉन्स्टेबल जनरल ड्यूटी के पद पर चयनित हुए थे. उन्होंने सभी टेस्ट पास किए थे और शुरुआती मेडिकल जांच में फिट पाए गए थे. उन्हें नियुक्ति पत्र भी जारी हुआ और वे प्रशिक्षण पर भेजे गए, लेकिन करीब छह महीने की ट्रेनिंग के बाद दोबारा हुई मेडिकल जांच में सभी में कलर ब्लाइंडनेस की पुष्टि हुई. CISF ने तर्क दिया कि कलर ब्लाइंडनेस वाली स्थिति किसी भी ऑपरेशन या आपात स्थिति में गंभीर जोखिम पैदा कर सकती है.

केंद्र का फैसला सही: दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस विमल कुमार यादव की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि वे इन दिशानिर्देशों को मनमाना या अव्यवहारिक नहीं मानते. कोर्ट ने यह भी माना कि जब इन तीनों की सेवाएं समाप्त की गईं तब वे स्थायी सदस्य नहीं थे, बल्कि केवल प्रोबेशन अवधि में थे. उन्होंने अभी सिर्फ छह महीने का प्रशिक्षण पूरा किया था. हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद 2013 की गाइडलाइन पूरी तरह प्रभावी बनी रहेगी और कलर ब्लाइंडनेस या दृष्टि दोष वाले उम्मीदवारों को CAPF और असम राइफल्स में भर्ती नहीं किया जाएगा.