दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बलात्कार के आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में 8 घंटे की देरी होने पर उसे जमानत दे दी. गौरतलब है कि  इस मामले में पीड़िता ढाई साल की है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने एक आदेश में कहा, " पीड़ित ढाई साल की है  जिसके कारण उसका बयान दर्ज नहीं किया गये थे, इसके अलावा इस मामले में एफआईआर 8 घंटे के बाद दर्ज की गई थी. इस कारण याचिकाकर्ता जमानत का हकदार है.

ढाई साल की पीड़िता के साथ ओरल संबंध बनाने का आरोप

बता दें कि यह मामला पिछले साल साउथ दिल्ली के जिला पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता ने मामला दर्ज कराने के दौरान कहा था कि आरोपी नशे की हालत में था. शिकायतकर्ता के मुताबिक आरोपी कथित रूप से पीड़िता पर ओरल संबंध बनाने के लिए दबाव बना रहा था. शिकायतकर्ता ने पुलिस से ये भी कहा था कि जब वह पीड़िता के पास पहुंचा उस समय आरोपी की पैंट की जिप खुली हुई थी.

आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 एबी (12 साल से कम उम्र की महिला पर बलात्कार) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम की धारा 6 (आक्रामक यौन उत्पीड़न) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

दिल्ली पुलिस ने आरोपी की जमानत याचिका का किया विरोध

वहीं दिल्ली पुलिस ने आरोपी की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट से कहा कि इस घटना के बाद पड़ोसी इकट्ठा हो गए थे और उन्होंने आरोपी की पिटाई भी की थी जिसके बाद उसे पुलिस को सौंप दिया गया था. बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

आरोपी के वकील ने दी ये दलीलें

इधर आरोपी के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि मामले में कई विरोधाभास हैं और आरोपी के एमएलसी में नशे के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं. उसके शरीर पर कोई अतिक्रमण नहीं था. वकील ने पड़ोसियों द्वारा पीटे जाने के दावे का भी खंडन किया और कहा कि उसके शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं मिले थे. इस पर भी बहस हुई कि शिकायतकर्ता द्वारा दी गई सीसीटीवी की कथित रिकॉर्डिंग को कभी भी पुलिस द्वारा सत्यापित नहीं किया गया था, जिसके कारण यह सबूत नहीं माना जा सकता है.

कोर्ट ने कहा मामले में तुरंत एफआईआर दर्ज क्यों नहीं हुई

वहीं कोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद आदेश में कहा, “उक्त सीसीटीवी फुटेज में पीड़िता के पिता इमारत के बाहर थे. शिकायतकर्ता ने इमारत में प्रवेश किया और एक मिनट के भीतर, वह याचिकाकर्ता को पकड़कर बाहर लाता हुआ दिखाई दे रहा है. अगर इस तरह का जघन्य अपराध हुआ है, और वह भी ढाई साल की बच्ची के साथ तो  तुरंत एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई. ”

आरोपी के एमएलसी में नहीं मिले नशे और चोट के निशान

अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी के एमएलसी में पिटाई और नशे का कोई संकेत नहीं था. “यदि पड़ोसियों ने याचिकाकर्ता को पीटा था और वह नशे की हालत में था, तो उक्त तथ्य एमएलसी में आने चाहिए था. लेकिन उक्त एमएलसी से ऐसी कई भी जानकारी नहीं मिलती है. जो यह दर्शाता है कि कोई भी सार्वजनिक पिटाई नहीं हुई थी और एफआईआर में ये बात बेबुनियादी है.

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