राष्ट्रीय राजधानी में सोमवार (17 फरवरी, 2025) सुबह आया भूकंप भूगर्भीय विशेषताओं में प्राकृतिक रूप से होने वाले बदलाव का परिणाम है, न कि प्लेट टेक्टोनिक्स के कारण ऐसा हुआ. राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक ओ.पी. मिश्रा ने ये बात कही है.
भूकंप का केंद्र धौला कुआं के झील पार्क क्षेत्र में पांच किलोमीटर की गहराई में था और वहां कुछ लोगों को भूकंप के बाद तेज आवाजें सुनाई देने की खबरें हैं. ओ.पी. मिश्रा ने कहा कि धौला कुआं क्षेत्र में 2007 में 4.6 तीव्रता का भूकंप आया था. हालांकि, इसका प्रभाव सोमवार के भूकंप जितना तीव्र नहीं था क्योंकि इसका केंद्र 10 किलोमीटर की गहराई में था.
ओ. पी मिश्रा ने कहा, 'सोमवार को आए भूकंप का केंद्र धौला कुआं के झील पार्क में था जो चार तीव्रता का था. यह पांच किलोमीटर की गहराई में था, इसीलिए इसका असर ज्यादा महसूस किया गया.' भूकंप विज्ञान की दृष्टि से इस क्षेत्र में पहले भी भूकंप आ चुके हैं और यह कोई नया क्षेत्र नहीं है.
ओ. पी. मिश्रा ने कहा, 'इससे पहले छह किलोमीटर दायरे में 4.6 तीव्रता का भूकंप आया था, लेकिन इसका केंद्र 10 किलोमीटर गहराई में था. यही अंतर है. यह प्लेट टेक्टोनिक के कारण आया भूकंप नहीं था, यह भूगर्भीय विशेषताओं में प्राकृतिक रूप से होने वाले बदलाव के कारण आया था.'
दिल्ली को भूकंपीय क्षेत्र-4 में रखा गया है, जो देश में दूसरा सबसे खतरे वाला क्षेत्र है. हिमालयी भूकंपों के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को मध्यम से उच्च जोखिम वाली भूकंपीय गतिविधि वाला क्षेत्र माना जाता है. हिमालयी क्षेत्र के गढ़वाल में 1803 में 7.5 तीव्रता का भूकंप, उत्तरकाशी में 1991 में 6.8 तीव्रता का भूकंप, चमोली में 1999 में 6.6 तीव्रता का भूकंप, गोरखा में 2015 में 7.8 तीव्रता का भूकंप और हिंदुकुश क्षेत्र में आए कुछ मध्यम भूकंप इसके उदाहरण हैं.
इसके निकटस्थ क्षेत्र में 1720 में दिल्ली में 6.5 तीव्रता का भूकंप, मथुरा में 1842 में पांच तीव्रता का भूकंप, बुलंदशहर में 1956 में 6.7 तीव्रता का भूकंप और मुरादाबाद में 1966 में 5.8 तीव्रता का भूकंप शामिल हैं.
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