भगवान के अस्तित्व पर चर्चा देखने को मिली. यह चर्चा गीतकार जावेद अख्तर और इस्लामिक विद्वान मुफ्ती शमाइल नदवी के बीच हुई. इसे नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया. इस चर्चा के अंश सोशल मीडिया पर वायरल है. यह चर्चा करीबन दो घंटे चली.

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न्यूज प्लेटफॉर्म 'द ललनटॉप' की तरफ से आयोजित इस चर्चा के दौरान जावेद अख्तर ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने गाजा युद्ध का हवाला दिया. इसमें 70 हजार फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं. अख्तर ने मानवीय पीड़ा और सर्वशक्तिमान देवता के बीच नैतिक विरोधाभास का हवाला दिया. उन्होंने कहा, 'अगर आप सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हैं, तो आपको गाजा में मौजूद रहना चाहिए. आपने बच्चों को टुकड़ों को फटते देखा होगा. फिर भी आप चाहते हैं कि मैं आप पर विश्वास करूं.'

जावेद अख्तर ने चुटकी लेते हुए कहा कि इसकी तुलना में हमारे प्रधानमंत्री बेहतर हैं. कुछ तो ख्याल करते हैं. इस दौरान अख्तर धर्म के नाम पर की गई हिंसा पर सवाल उठाते रहे. उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों कि सब कुछ भगवान के इस विचार पर आकर रुक जाता है. हमें सभी सवाल क्यों रोकने चाहिए. किस तरह का भगवान बच्चों को बम से उड़ाने की इजाजत देता है? अगर वह मौजूद है, इसकी इजाजत देता है, तो बेहतर है कि वह न ही हो. 

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मुफ्ती शमाइल नदवी ने क्या कहा?अख्तर की बाद मुफ्ती शमाइल नदवी ने जवाब दिया. उन्होंने इसकी जिम्मेदारी सीधे इंसानों पर डाली. उन्होंने कहा कि भगवान निर्माता है, उसने बुराई बनाई है. वह बुरा नहीं है. जो लोग अपनी स्वतंत्र इच्छा का दुरुपयोग करते हैं, वे जिम्मेदार हैं.  उन्होंने कहा कि हिंसा और बलात्कार मानव के काम हैं, न की देवताओं के. न तो विज्ञान है और न ही धर्मग्रंथ भगवान पर बहस में एक सामान्य मापदंड के रूप में काम कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि विज्ञान भौतिक दुनिया तक सीमित है. भगवान की परिभाषा इन सभी से अलग है. धर्मग्रंथ उन लोगों को यकीन नहीं दिला सकते, जो ज्ञान के स्त्रोत के रूप में रहस्योद्घाटन को स्वीकार नहीं करते हैं. साइंटिफिक स्पष्टीकरण भगवान की जरूरत को खत्म कर देते हैं.फिजिक्स या बायोलॉजी की खोजें बताती है कि ब्रह्मांड कैसे काम करते है, न कि यह क्यों मौजूद है. उन्होंने जावेद अख्तर से कहा कि अगर आपको नहीं पता तो यह दावा न करें कि भगवान मौजूद नहीं है. 

इस पर जावेद अख्तर ने जवाब दिया कि अज्ञानता को स्वीकार करना ही उनकी स्थिति है. कोई भी दार्शनिक या वैज्ञानिक पूरे ज्ञान का दावा नहीं करते. इंसानों को पूर्ण उत्तरों को विरोध करना चाहिए. 

'जब तक कोई सबूत नहीं होता, तो कोई तर्क नहीं होता'विश्वास और आस्था के बीच भी दोनों के बीच तर्क वितर्क देखने को मिले. इस पर अख्तर ने कहा कि विश्वास सबूत, तर्क और गवाही पर आधारित होता है. उन्होंने कहा कि जब कोई सबूत नहीं होता, तो कोई तर्क नहीं होता. कोई गवाह नहीं होता. फिर भी आपसे विश्वास करने के लिए कहा जाता है. तो वह आस्था है. उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी मांगे सवाल पूछने को हतोत्साहित करती है. बहस नैतिकता और न्याय पर भी हुई. उन्होंने कहा कि नैतिकता एक मानवीय रचना है. न कि प्रकृति की कोई विशेषता. उन्होंने कहा, 'प्रकृति में कोई न्याय नहीं है.'