देश में 14 साल के लंबे अंतराल के बाद जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है. इसी बीच 2027 में जातिगत जनगणना कराए जाने की घोषणा ने नई बहस को जन्म दे दिया है. अब इस मुद्दे पर देश के व्यापारियों के शीर्ष संगठन चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (CTI) ने सरकार से एक अहम और संवेदनशील मांग रखी है, जो नीतियों और सामाजिक संतुलन को नई दिशा दे सकती है.

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2027 में जातिगत जनगणना का ऐलान

केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा 2027 में जातिगत जनगणना की घोषणा के बाद विभिन्न वर्गों से प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी हैं. इसे सामाजिक संरचना को समझने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन इसके दायरे को और व्यापक बनाने की मांग अब तेज हो गई है.

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दिल्ली और देश के व्यापारियों के शीर्ष संगठन CTI के चेयरमैन बृजेश गोयल ने इस विषय में केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने जातिगत जनगणना के साथ-साथ करदाताओं से जुड़ा अहम डेटा भी सार्वजनिक करने की मांग की है.

किस जाति के लोग कितना टैक्स देते हैं, यह भी हो उजागर

CTI चेयरमैन बृजेश गोयल और महासचिव गुरमीत अरोड़ा का कहना है कि जातिगत सर्वे के दौरान यह जानकारी भी इकट्ठा की जानी चाहिए कि किस जाति के लोग सरकार को कितना टैक्स देते हैं. उनका मानना है कि इससे देश की आर्थिक रीढ़ को समझने में मदद मिलेगी.

अर्थव्यवस्था में किसका कितना योगदान, जनता को पता चले

बृजेश गोयल ने स्पष्ट किया कि CTI का मकसद किसी वर्ग को निशाना बनाना नहीं, बल्कि यह सामने लाना है कि देश की अर्थव्यवस्था को चलाने में किस जाति के लोगों की कितनी अहम भूमिका है. कौन सबसे ज्यादा टैक्स देता है और क्या सरकार नीतियां बनाते समय उनके हितों को ध्यान में रखती है, इन सवालों के जवाब जरूरी हैं.

सरकार के पास मौजूद है पूरा टैक्स डेटा

CTI के वरिष्ठ उपाध्यक्ष दीपक गर्ग और उपाध्यक्ष राहुल अदलखा ने कहा कि सरकार के पास इनकम टैक्स और जीएसटी से जुड़ा पूरा डेटा पहले से मौजूद है. इसके बावजूद आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि कौन-सी जाति सरकार को कितना राजस्व देती है. अगर करदाताओं की सूची जाति आधारित जारी हो, तो तस्वीर साफ हो सकती है.

अधिक राजस्व देने वालों के लिए भी हों विशेष नीतियां

CTI नेताओं का कहना है कि जो जाति या वर्ग सरकार को सबसे अधिक राजस्व देता है, उसके लिए भी विशेष नीतियां बननी चाहिए. बीमा, पेंशन और बेहतर मेडिकल सुविधाएं केवल कुछ वर्गों तक सीमित न रहें, बल्कि योगदान के आधार पर सभी को उनका हक मिले. बृजेश गोयल ने बताया कि देश में करीब 6 करोड़ व्यापारी हैं, जबकि अकेले दिल्ली में 20 लाख व्यापारी कारोबार कर रहे हैं. व्यापारियों को भी सामाजिक समानता के आधार पर उनका अधिकार मिलना चाहिए. एक व्यापारिक संगठन होने के नाते CTI इस मुद्दे को मजबूती से उठा रहा है.

ट्रेडर्स कम्युनिटी में तेज हुई चर्चा

इस मांग को लेकर ट्रेडर्स कम्युनिटी में जोरदार चर्चा चल रही है. CTI का दावा है कि हजारों व्यापारियों ने इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति जताई है और वे चाहते हैं कि सरकार इस दिशा में गंभीरता से विचार करे.