नई दिल्लीः विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के एक वैज्ञानिक ने एक लेख में लिखा है कि कोविड-19 के लिए भारतीय वैक्सीन, कोवेक्सिन और जाइकोव-डी के इंसानों पर परीक्षण के लिहाज से भारत के दवा महानियंत्रक की ओर से मंजूरी मिलना कोरोना वायरस महामारी के ‘अंत की शुरुआत’ है. पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) और मंत्रालय के तहत आने वाली संस्था विज्ञान प्रसार की वेबसाइट पर लेख प्रकाशित किया गया है. पीआईबी की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख में कोई समय-सीमा नहीं बताई गयी है. वहीं विज्ञान प्रसार के पोर्टल पर कहा गया है कि वैक्सीन के लिए लाइसेंस जारी होने में 15 से 18 महीने लग सकते हैं. 'अंधेरे में रोशनी की किरण' विज्ञान प्रसार में वैज्ञानिक टीवी वेंकटेश्वरन ने लेख में कहा कि भारत बायोटेक द्वारा कोवेक्सिन और जाइडस कैडिला द्वारा जाइकोव-डी की घोषणा अंधेरे में रोशनी की एक किरण की तरह है. आलेख में लिखा गया है, ‘‘अब भारत के दवा महानियंत्रक और केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन की ओर से टीकों के मनुष्य पर परीक्षण की मंजूरी मिलने से अंत की शुरुआत हो गयी है.’’ पिछले कुछ सालों में भारत टीकों के उत्पादन में दुनियाभर में बड़ा केंद्र बनकर उभरा है और यूनिसेफ को टीकों की आपूर्ति में 60 प्रतिशत आपूर्ति भारतीय निर्माताओं की ओर से की जाती है. भारतीय सहयोग जरूरी लेख के अनुसार, ‘‘नोवेल कोरोना वायरस का टीका दुनियाभर में कहीं भी बन सकता है, लेकिन बिना भारतीय निर्माताओं की सहभागिता के आवश्यक मात्रा का उत्पादन व्यवहार्य नहीं रहने वाला.’’ इसमें लिखा गया है कि वैश्विक स्तर पर 140 से अधिक टीकों का अनेक स्तर पर विकास चल रहा है. लेख के मुताबिक दो भारतीय टीकों, कोवेक्सिन और जाइकोव-डी के साथ दुनियाभर में 140 में से 11 टीके इंसानी परीक्षण के स्तर में पहुंच गये हैं. ये भी पढ़ें महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटे में आए रिकॉर्ड 6555 केस, अब तक 8822 लोगों को लील गया कोरोना सीमा विवाद और कोरोना वायरस पर रक्षा मंत्री राजनाथ का बड़ा बयान, 'अस्पताल और बॉर्डर पर पूरी तैयारी है'