नई दिल्ली: देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच यह सवाल लगातार उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि कोविड19 वायरस के तेवर गर्म हो गए? क्या इस संक्रमण फैलाव के पीछे केवल लोगों का व्यवहार ही जिम्मेदार है या फिर भारत में सामने आया डबल वेरिएंट इसके पीछे है? साथ ही अगर डबल वेरिएंट का पता अक्टूबर में ही लग गया था तो आखिर क्यों इसके बारे में लोगों को समय रहते आगाह नहीं किया गया, क्या हमारे वैज्ञानिक और सिस्टम इसमें चूका?


ऐसे सवालों की फेहरिस्त तो लंबी है, लेकिन इनके जवाबों पर देश के वैज्ञानिक जानकारों की राय भी बंटी हुई है. इन सवालों की तलाश में एबीपी न्यूज़ ने बात की देश के प्रमुख वैज्ञानिकों से. इस कड़ी में जब हमने देश की हैदराबाद स्थित प्रमुख वैज्ञानिक प्रयोगशाला सेंटर फॉर मॉलीक्यूलर बॉयोलॉजी के निदेशक डॉ राकेश मिश्रा से सवाल किए तो पता लगा कि अक्टूबर 2020 की शुरुआत में ही कोरोना वायरस के नए संस्करण बी.1.1.167 के निशान महाराष्ट्र से आए नमूनों में मिल गए थे. इसके बाद देश के सबसे प्रभावित सूबे महाराष्ट्र में नए डबल वेरियंट का विस्तार सामने आता रहा, जो अब राज्य के करीब 30 फीसद मामलों के लिए ज़िम्मेदार है. 


हालांकि डॉ मिश्रा यह स्वीकार करते हैं कि फरवरी 2020 से भारत में अपने पैर पसार रहे कोरोना वायरस के बदलते चेहरों की पड़ताल के लिए देश में व्यापक जीनोम सिक्वेंसिंग की गम्भीर कोशिशें दिसम्बर 2020 के बाद ही शुरू हुईं जब कोविड19 वायरस का यूके संस्करण सामने आया. दरअसल, इसके पहले तक भारतीय प्रयोगशालाएं अपने सीमित साधनों और आर्थिक संसाधनों के जरिए वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग कर रही थी. जाहिर है न तो यह आंकड़ा पर्याप्त था और न इसके लिए प्रयोगशालाओं में पहुंच रहे नमूने. 


डॉ मिश्रा के मुताबिक यह सच है कि जब 10 हज़ार प्रतिदिन तक आंकड़ों का ग्राफ नीचे आ गया तो लोगों को लगा कि वायरस नियंत्रण में है. इसमें कुछ ढिलाई हुई तो कुछ कमज़ोरी साधनों व आर्थिक संसाधनों की रही. मगर यहीं गफलत हो गई. 


माना जा रहा है कि नोवल कोरोना वायरस में करीब 15 म्यूटेशन वाले इस डबल वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव हुआ है. इसके कारण इंसानी शरीर में इम्यूनिटी सिस्टम को चकमा देने और अधिक तेजी से कोशिकाओं में दाखिल होने की क्षमता बढ़ी है. इसने वायरस को अधिक संक्रामक भी बनाया है. मगर डॉ मिश्रा के मुताबिक यह अभी अनुमान है. इसको साबित करने के लिए पर्याप्त परीक्षण किए जा रहे हैं जिनके बाद ही ठोस रूप में कुछ कहा जा सकेगा.


डॉ राकेश मिश्रा जैसे वैज्ञानिकों का कहना है कि डबल वेरिएंट निश्चित ही एक वेरिएंट ऑफ कन्सर्न यानि चिंता का सबब है. लेकिन देश भर से आ रहे आकंडों के आधार पर अभी यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोना मामलों में बढ़ोतरी के लिए यह डबल वेरिएंट ही अधिक ज़िम्मेदार है. क्योंकि महाराष्ट्र के 25-30 फीसद या कुछ जगहों पर 50 फीसद तक मामलों के लिए यह डबल वेरिएंट जिम्मेदार है. लेकिन देश में कई तरह के वेरिएंट घूम रहे हैं. 


जैसे दिल्ली में कुछ हिस्सा यूके वेरिएंट का है. पंजाब में अधिकतर मामले यूके वेरिएंट से जुड़े हुए हैं. लिहाजा पुराना मामलों के हाल ही में बढ़े ग्राफ के पीछे लोगों का बर्ताव और ढिलाई ज्यादा बड़ा कारक है. क्योंकि जमकर चुनाव किए गए बड़ी-बड़ी रैलियां आयोजित होने लगीं, भीड़ के साथ शादियां की जाने लगीं. इसने वायरस को फैलने का मौका दे दिया.


साथ ही CCMB निदेशक का कहना था कि डबल वेरिएंट में अभी तक हुए परीक्षण व आकलन से सामने आया है कि यह डबल वेरिएंट तेज़ी से फैला ज़रूर है, लेकिन शरीर में बनी एंटीबॉडीज़ को बेअसर नहीं करता. साथ ही इसके कारण रीइनफेक्शन यानि पुनः बीमार पड़ने की रफ्तार भी अधिक नहीं है. लिहाज़ा यह माना जा सकता है कि मौजूदा वैक्सीन इस डबल वेरिएंट के खिलाफ कारगर है.


हालांकि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर संजीव राय कहते हैं कि भारत में चुनाव हुए, क़ई धार्मिक आयोजन या जलसे हुए. लेकिन ऐसा क्यों है कि अचानक ब्राजील, अमेरिका, बांग्लादेश, समेत कई देशों में एक साथ कोविड के मामले बढ़ने लगे. निश्चित तौर पर इस बढ़ोतरी के पीछे कोरोना वायरस का नया वेरिएंट या संस्करण जिम्मेदार है. लोगों की लापरवाही का अपना हिस्सा है, लेकिन वायरस के बदलते चेहरों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. क्योंकि लोग लगभग एक जैसी ही लापरवाही करते आए हैं, लेकिन अचानक से वायरस की संक्रामकता में बदलाव हुआ है. ऐसा ब्रिटेन में भी देखा गया कि अचानक सब कुछ ठीक करने के बावजूद कोविड का ग्राफ बढ़ने लगा था. बाद में पता चला कि इसके लिए यूके वेरिएंट यानी कोरोना का नया संस्करण जिम्मेदार है.


डॉ गौरी अग्रवाल जो जीन स्ट्रिंग डायग्नोस्टिक से जुड़ी हुई हैं, उनका भी यही मत है कि वायरस में हो रहे बदलावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. निश्चित रूप से इंसानी संपर्कों से वायरस के बदलाव की संभावनाएं बढ़ती है. लेकिन वायरस को भी लगातार मॉनिटर करते रहना पड़ेगा, ताकि इसके बदलते स्वरूप से सतर्क रहा जा सके.


बहरहाल, अब यह लक्ष्य रखा गया है कि देश भर से 5 फीसद नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग की जाएगी. यानि कोविड पॉज़िटिव आने वाले मरीजों के नमूनों को देश की 10 चिह्नित प्रयोगशालों में भेजा जाए. यह काफी भारी भरकम काम है क्योंकि इसके लिए प्रति सप्ताह दो बार या कम से कम हफ्ते में एक बार सैंपल प्रयोगशालाओं में पहुंचाने होंगे. ड्राय आइस वाली कोल्ड स्टोरेज सुविधा में सहेजकर नमूनों को देश के विभिन्न कोनों से हैदराबाद, दिल्ली समेत अनेक शहरों में स्थित प्रयोगशालाओं को देना होगा, ताकि अलग अलग जगह से आ रहे नमूनों से वायरस को निकालकर उसके बदलावों की पड़ताल की जा सके. 


ध्यान रहे की जीन सीक्वेंसिंग वो तरीका है, जिसके सहारे समय रहते वायरस के बदलावों को पहचाना जा सकता है. इस बात का पता लगाया जा सकता है कि क्या वायरस में हुए बदलाव इसकी संक्रामकता को बढ़ा तो नहीं रहे? अथवा कहीं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमताओं व टीकों को बेअसर तो नहीं कर रहे? इस तरीके का इस्तेमाल टीकों के विकास में भी कारगर होता है.


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