जम्मू-कश्मीर सरकार को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले को लेकर धमकी मिलने पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार (11 मार्च, 2025) को जम्मू-कश्मीर में दैनिक वेतन भोगियों के नियमितीकरण के लिए एक समिति के गठन की घोषणा की. उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'समिति छह महीने के भीतर एक रोडमैप तैयार करेगी और इसे अगले बजट में शामिल किया जाएगा. 

बजट चर्चाओं का जवाब देते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'मैं मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव, सचिव योजना और विधि सचिव को शामिल करते हुए एक समिति के गठन के आदेश जारी करूंगा'. 

दैनिक वेतन भोगियों पर लाठीचार्ज की आलोचनाइससे पहले विपक्षी बीजेपी ने जम्मू और श्रीनगर में प्रदर्शन कर रहे दैनिक वेतन भोगियों पर लाठीचार्ज और बल प्रयोग को लेकर सरकार की आलोचना की और सदन में हंगामा किया. जवाब में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के मुद्दे को 'मानवीय' मुद्दा बताते हुए कहा कि उनकी सरकार पुलिस को नियंत्रित नहीं करती है. 

उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'वे हमारे अपने कर्मचारी हैं और उनके मुद्दे वास्तविक हैं. यह वित्तीय मुद्दा नहीं बल्कि मानवीय मुद्दा है. विपक्ष को उस मुद्दे को संबोधित करना चाहिए जहां पुलिस को वास्तव में नियंत्रित किया जा रहा था'.

उमर अब्दुल्ला ने एलजी पर साधा निशानाएलजी पर निशाना साधते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने के बजाय उनके साथ सहानुभूति से पेश आना चाहिए था और उन्होंने कहा कि पुलिस ने उनकी सरकार के निर्देशों पर काम नहीं किया और उम्मीद जताई कि भविष्य में ऐसे प्रदर्शनकारियों की पिटाई करने के बजाय उनकी बात सुनी जाएगी. 

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन की 2007 के उच्च न्यायालय के आदेश को लागू करने में विफल रहने पर कड़ी आलोचना की. शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की थी कि यह मामला सरकारी अधिकारियों द्वारा कानून से ऊपर काम करने का एक 'पाठ्यपुस्तक उदाहरण' है. 

कर्मचारियों ने फिर से SC का दरवाजा खटखटायाजम्मू-कश्मीर सरकार ने हाल ही में कहा था कि वह दैनिक वेतन और आवश्यकता आधारित कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित नहीं करेगी क्योंकि उनमें से अधिकांश को किसी भी सरकारी मंत्रालय से किसी औपचारिक आदेश के बिना नियुक्त किया गया है. आदेश के बाद, कर्मचारियों ने फिर से सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जहां 2006 में याचिकाकर्ता कर्मचारियों के पक्ष में मामला तय हुआ.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सरकारी अधिकारियों की निष्क्रियता पर आश्चर्य व्यक्त किया उनके व्यवहार को "प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण" कहा. अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'कर्मचारियों को बार-बार अस्पष्ट आदेशों से परेशान किया गया है, जो 2007 के फैसले की भावना को नजरअंदाज करते हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ दंड लगाने और अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने पर भी विचार किया लेकिन ऐसा करने से परहेज किया क्योंकि हाईकोर्ट में अवमानना की कार्यवाही पहले से ही लंबित थी.

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