सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सूर्य कांत ने कहा है कि किसी मामले को सुनते हुए जज का कुछ टिप्पणी करना सामान्य बात है. इसे लेकर जज पर पक्षपात का आरोप लगाना गलत है. हाल ही में एक टिप्पणी को लेकर हुई अपनी आलोचना की तरफ इशारा करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, "मैं उनमें से नहीं हूं जिन्हें दबाव में डाला जा सकता है. मेरे साथ ऐसा करना आसान नहीं है.'

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रोहिंग्या केस में की थी टिप्पणीहालांकि, चीफ जस्टिस ने यह नहीं कहा कि वह खुद से जुड़ी किस टिप्पणी की बात कर रहे हैं, लेकिन हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर कई लोगों ने रोहिंग्या मामले में की गई टिप्पणी के लिए उनकी आलोचना की है. 2 दिसंबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी बता रहे वकील को चीफ जस्टिस ने आड़े-हाथों लिया था. उन्होंने कहा था, 'मुझे दिखाइए कि भारत ने कब उन्हें आधिकारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा दिया है? कोई देश में घुसपैठ कर ले, उसके बाद नागरिकों जैसे कानूनी अधिकार मांगने लगे. यह कैसे चल सकता है? क्या हम रेड कार्पेट बिछा कर इन लोगों का स्वागत करें?'

कर्नाटक सेक्स स्कैंडल केस की सुनवाईचीफ जस्टिस ने यह बातें कर्नाटक सेक्स स्कैंडल केस में फंसे जेडीएस नेता प्रज्ज्वल रेवन्ना की याचिका को खारिज करते हुए कही हैं. रेवन्ना ने अपना मुकदमा दूसरी कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की थी. हाई कोर्ट पहले ही इस मांग को ठुकरा चुका है. सुप्रीम कोर्ट पहुंचे रेवन्ना ने ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट पर अपने खिलाफ पूर्वाग्रह रखने का आरोप लगाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने से मना कर दिया.

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'महज टिप्पणी पक्षपात का आधार नहीं'चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि ट्रायल जज की टिप्पणियां साधारण और निर्दोष किस्म की थीं. उन्हें पक्षपात का आधार नहीं माना जा सकता. निचली अदालत के जज ने जो कुछ भी कहा, वह मामले के रिकॉर्ड और हाई कोर्ट के आदेशों के आधार पर कहा. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने यह भी कहा, 'जज बड़ी मात्रा में मुकदमों और उनसे जुड़े साक्ष्यों से निपटते है. कभी उनसे गलतियां भी हो सकती हैं, लेकिन वह उन्हें सुधार भी लेते भी हैं.'

 

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