नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के नगर निगम चुनाव के नतीजों ने योगी आदित्यनाथ को पहली परीक्षा में तो अव्वल ला ही दिया है, बहुजन समाज पार्टी को भी संजीवनी दी है. इस चुनाव में बसपा ने पूरे प्रदेश में जोरदार प्रदर्शन किया है. प्रदेश के 16 महापौर में भले ही भाजपा की झोली में 14 सीटें गई हैं, लेकिन बसपा ने तमाम मोर्चों पर भाजपा को कई राउंड तक उलझन में रखा.


अलीगढ़ में बसपा ने भाजपा का 22 साल पुराना किला ढहा दिया तो मेरठ भी कब्जाया है. बसपा ने पश्चिम यूपी में दूसरा स्थान कायम रखा तो मध्य और पूर्व यूपी में मत प्रतिशत को बढ़ाकर पार्टी का वजूद मजबूत किया है. ऐसे में वर्ष 2019 के आम चुनावों में बसपा की अगुवाई में गहागठबंधन की सुगबुगाहट शुरू हो गई है.


सोशल इंजीनियरिंग से बसपा नई ऊर्जा


तमाम बड़े नेताओं की बगावत से बेचैन बसपा ने निकाय चुनावों में बड़े चेहरों पर दांव लगाने के बजाय सोशल इंजीनियरिंग को चुना. इसी रणनीति के चलते पार्टी ने मिश्रित आबादी वाले अलीगढ़ में मुस्लिम चेहरे मो. फुरकान को मैदान में उतारा, जबकि जाट बिरादरी के किले मेरठ में सुनीता वर्मा के रूप में गैर जाट वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया. दोनों शहरों में बसपा की जीत का नतीजा सामने है. झांसी में बसपा ने ब्राह्मण चेहरे बृजेंद्र व्यास को टिकट देकर कांग्रेस और सपा का खेल बिगाड़ा, जबकि आखिरी राउंड तक भाजपा के रामतीर्थ सिंघल को परेशान किये रखा.


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दूसरे बड़े शहरों में भी धमाकेदार आगाज


पिछले चुनावों की तुलना में बसपा ने वर्ष 2017 के निकाय चुनावों में बड़े शहरों में शानदार प्रदर्शन किया है. वर्ष 2012 के निकाय चुनावों में कानपुर में बसपा समर्थित प्रत्याशी को 20 हजार वोट भी नहीं मिले थे, जबकि इस मर्तबा पार्टी ने पचास हजार का आंकड़ा स्पर्श किया है. इसी प्रकार लखनऊ में बीते चुनावों में दयनीय प्रदर्शन करने वाली बसपा ने पचास हजार से ज्यादा वोट हासिल हुए हैं. पश्चिम यूपी में नगर निगम के अतिरिक्त नगर पालिका तथा नगर पंचायत के निकायों में भी बसपा को जबरदस्त जीत मिली है.


यूपी की सियासत में मायावती फ़ैक्टर होगा मज़बूत


निकाय चुनावों से पुनर्जीवित हुई बसपा अब लोकसभा चुनाव के लिए नए समीकरण गढऩे की तैयारी में जुट गई है. निकाय चुनावों से उत्साहित बसपा महासचिव सतीशचंद्र मिश्र ने कहा कि बसपा का उपहास करने वाले राजनेताओं और दलों को अब नए सिरे से सोचना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनावों की तैयारियों के लिए काफी वक्त है, इसलिए भाजपा के सफाए के लिए अन्य राजनीतिक दलों को बसपा की अगुवाई में महागठबंधन स्वीकार करने से परहेज नहीं होना चाहिए. सतीशचंद्र मिश्र की यह टिप्पणी सपा और कांग्रेस को गठबंधन के लिए परोक्ष न्योता है. गौरतलब है कि विधानसभा चुनावों के नतीजों के लिए सपा ने बसपा से हाथ मिलाने की बात कही थी, लेकिन नतीजों के बाद सपा ने बसपा को गठबंधन में दोयम भूमिका में रखना चाहा तो मायावती ने एकला चलना बेहतर समझा था.


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पार्टी को मुस्लिमों का साथ, दलित भी जुड़े


निकाय चुनावों में खास यह रहा कि मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा के विरोध में सपा या कांग्रेस के उम्मीदवार को वरीयता देने के बजाय बसपा पर भरोसा किया. इसके अतिरिक्त लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पार्टी से नाराज हुआ आधार वोटबैंक यानी दलित मतदाता भी बड़ी तादात में लौट आए. इसी सोशल इंजीनियरिंग ने बसपा की झोली में दो नगर निगम डालने के साथ-साथ नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में हाथी की चाल को तेज कर दिया. राजनीति के जानकारों के मुताबिक, दलित और मुस्लिम मतदाताओं के साथ पिछड़े और यादव वोटर भी जुड़ गए तो बीजेपी की चुनौती जटिल हो जाएगी.