Chief Justice SK Kaul:  सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसले सुनाने के बाद चीफ जस्टिस एस के कौल ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के अंतर-पीढ़ीगत आघात के घावों को भरने की जरूरत है.


न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि कम से कम 1980 के दशक से जम्मू-कश्मीर में स्टेट और नॉन-स्टेट एक्टर्स के किए गए मानवाधिकारों के हनन की जांच और सुलह के उपायों की सिफारिश करने के लिए एक निष्पक्ष सुलह आयोग का गठन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में कश्मीर घाटी में जमीनी स्तर पर एक परेशान करने वाली स्थिति थी और इसके चलते राज्य की आबादी के एक हिस्से के इसका परिणाम भुगतना पड़ा.


'तीन दशकों में बेहद कम हुआ बदलाव'
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि यह स्वैच्छिक प्रवास नहीं था. लोगों को मजबूरी में अपना घर और चूल्हा छोड़ना पड़ा था. अपने फैसले में उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडित समुदाय का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था और उनकी जान और संपत्ति को भी खतरा था. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर तीन दशकों के बाद भी बहुत कम बदलाव हुआ है. क्षेत्र के लोगों ने जो अनुभव किया है वह उस पीड़ा को महसूस किए बिना नहीं रह सकते.


जस्टिस कौल ने कहा, "जो बात दांव पर है, वह केवल अन्याय की पुनरावृत्ति को रोकना नहीं है, बल्कि क्षेत्र के सामाजिक ताने-बाने को उस रूप में बहाल करने का बोझ है.


विभाजन के वक्त भी नहीं बिगड़ा था कश्मीर का आपसी सौहार्द 
उन्होंने कहा कि यह ध्यान देने योग्य है कि भारत का विभाजन भी 1947 में जम्मू-कश्मीर के सांप्रदायिक और सामाजिक सौहार्द को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका था. इस संदर्भ में महात्मा गांधी का यह कथन प्रसिद्ध है कि कश्मीर मानवता के लिए आशा की किरण है!


न्यायमूर्ति कौल ने जोर देकर कहा, "पहले से ही युवाओं की एक पूरी पीढ़ी अविश्‍वास की भावनाओं के साथ बड़ी हुई है और हम पर उनकी क्षतिपूर्ति का सबसे बड़ा कर्तव्य है."


'अदालतें न्याय करें'
उन्होंने कहा कि हमारा संविधान यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि अदालतें उन स्थितियों में न्याय प्रदान करें, जहां मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है और न्याय करते समय अदालतें सामाजिक मांगों के प्रति संवेदनशील रही हैं और लचीले उपचार की पेशकश की है.


'हमें भविष्य देखना चाहिए'
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, "कहने की जरूरत नहीं है, आयोग प्रणालीगत सुधार के लक्ष्य की दिशा में कई रास्तों में से एक है. यह मेरी आशा है कि बहुत कुछ हासिल किया जाएगा, जब कश्मीरी अतीत को अपनाने के लिए अपना दिल खोलेंगे और उन लोगों को सुविधा देंगे, जो पलायन करने के लिए मजबूर थे. हम चाहेंगे कि वे सम्मान के साथ वापस आएं, जो कुछ भी था, वह हो चुका है, लेकिन हमें भविष्य देखना है.''


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