SC On PMLA Plea: छत्तीसगढ़ सरकार को कोर्ट से अंतरिम राहत मिली है और न्यायालय ने PMLA को चुनौती देने वाली छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी है. राज्य सरकार की नौकरियों में 58 प्रतिशत आरक्षण फिलहाल जारी रहेगा. सितंबर 2022 में हाई कोर्ट ने इसे 50% सीमा के परे बताते हुए रद्द कर दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को सुनते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई थी. अब सुप्रीम कोर्ट 18 जुलाई को अगली सुनवाई करेगी.
साल 2011 में पारित हुए कानून में छत्तीसगढ़ में 32% ST, 12% SC और 14% OBC आरक्षण का प्रावधान किया गया था. सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत के बाद फिलहाल यह व्यवस्था जारी रहेगी. छत्तीसगढ़ सरकार की उस याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी जिसमें धनशोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग का था आरोपन्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने सुनवाई अगस्त तक स्थगित कर दी. अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एस.वी. राजू मामले में प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से पेश हुए. छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि गैर-बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों के सामान्य कामकाज को बाधित करने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है.
भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत कानून को चुनौती देते हुए मूल वाद दायर किया था. अनुच्छेद 131 किसी राज्य को केंद्र या अन्य किसी राज्य के साथ विवाद के मामलों में सीधे उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार देता है.
कोर्ट ने रखा PMLA की वैधता को कायमछत्तीसगढ़ धनशोधन रोकथाम कानून और इसके प्रावधानों को चुनौती देने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. इससे पहले, निजी क्षेत्र के लोगों और पक्षों ने विभिन्न आधार पर कानून को चुनौती दी थी लेकिन पिछले साल शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने इसकी वैधता को कायम रखा था. छत्तीसगढ़ के वाद में कहा गया है कि राज्य सरकार को प्रदेश के अधिकारियों और निवासियों की तरफ से अनेक शिकायतें मिल रही हैं कि प्रवर्तन निदेशालय जांच करने की आड़ में उन्हें 'प्रताड़ित कर रहा है और दुर्व्यवहार कर रहा है.'
इसमें कहा गया है कि अधिकारों के इस तरह दुरुपयोग के कारण छत्तीसगढ़ को अदालत में आने को मजबूर होना पड़ रहा है. इससे पहले प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और वकील सुमीर सोढ़ी ने छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए कहा था कि यह संवैधानिक महत्व का विषय है और इस पर तत्काल सुनवाई जरूरी है
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