उत्तराखंड कैडर के भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को केंद्र में संयुक्त सचिव के पद के लिए पैनल में शामिल न किए जाने के मामले में केंद्र सरकार ने एक बार फिर अपना रुख बदला है. भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने इस मामले में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट) में शपथपत्र दाखिल कर 14 अक्टूबर 2024 के अपने पूर्व आदेश को वापस लेने की प्रार्थना की है.

Continues below advertisement

14 अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की मांग14 अक्टूबर के आदेश में ट्रिब्यूनल ने डीओपीटी को 360 डिग्री मूल्यांकन या मल्टी सोर्स फीडबैक (एमएसएफ) से संबंधित गाइडलाइंस को रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया था. अब डीओपीटी का कहना है कि ये गाइडलाइंस कमेटी के दायरे में आती हैं और इन्हें सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता, बल्कि केवल ट्रिब्यूनल को गोपनीय रूप से दिखाया जा सकता है.

अधिवक्ता ने बताया केंद्र का ‘यू-टर्न’आईएफएस संजीव चतुर्वेदी के अधिवक्ता सुदर्शन गर्ग ने इसे केंद्र सरकार का एक और 'यू-टर्न' करार दिया है. उन्होंने कहा कि डीओपीटी पहले ही संसदीय समिति के सामने 360 डिग्री अप्रेजल की पूरी प्रक्रिया का खुलासा कर चुका है.

Continues below advertisement

संसदीय समिति के सामने दी जा चुकी है जानकारीगर्ग के अनुसार, डीओपीटी सचिव ने संसदीय समिति को बताया था कि संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के पद के लिए एम्पैनलमेंट में वरिष्ठ, कनिष्ठ, समकक्ष, बाहरी हितधारक और संबंधित सचिव से फीडबैक लिया जाता है. इसमें निष्ठा, कार्यकुशलता, व्यवहार, क्षमता और विशेषज्ञता का मूल्यांकन किया जाता है.

सीलबंद लिफाफे पर उठे सवालगर्ग ने सवाल उठाया कि जब छह साल पहले संसदीय समिति के सामने इस सिस्टम की पूरी जानकारी दी जा चुकी है, तो अब इसे सीलबंद लिफाफे में रखने का क्या औचित्य है. उन्होंने इसे अजीब और विरोधाभासी रुख बताया.

360 डिग्री अप्रेजल पर पहले भी उठ चुके हैं सवालगौरतलब है कि 10 अगस्त 2017 को कार्मिक एवं प्रशिक्षण से संबंधित संसदीय समिति ने अपनी 92वीं रिपोर्ट में 360 डिग्री अप्रेजल प्रणाली की समीक्षा की थी. समिति ने इसे अपारदर्शी और व्यक्तिपरक बताया था और यह भी आशंका जताई थी कि इसमें हेराफेरी की संभावना बनी रहती है.

पहले भी बदल चुका है डीओपीटी का रुखइससे पहले 9 अक्टूबर 2023 को डीओपीटी ने कैट में दायर शपथपत्र में कहा था कि केंद्र सरकार में ऐसा कोई सिस्टम मौजूद नहीं है और इसलिए कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. वहीं, 23 मई 2024 को सुनवाई के दौरान डीओपीटी के अधिवक्ता ने कहा था कि एमएसएफ प्रविधान के कारण चतुर्वेदी के एम्पैनलमेंट से जुड़े दस्तावेज साझा नहीं किए जा सकते. इस पूरे मामले में केंद्र के बदलते रुख ने विवाद को और गहरा कर दिया है.