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मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को वापस बुला सकता है केंद्र लेकिन सीएम ममता कर सकती हैं इनकार

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि ऐसी परिस्थिति में मुख्य सचिव खुद को अजीब स्थिति में पा सकते हैं क्योंकि अगर वह राज्य सरकार द्वारा कार्यमुक्त नहीं किए जाने के आधार पर केंद्रीय प्रति नियुक्ति से इनकार करते हैं तो उनके खिलाफ प्रशासिक कार्रवाई की जा सकती है.

नई दिल्ली: पूर्व शीर्ष नौकरशाहों और विधि विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार के लिए पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को सेवानिवृत्त होने के दिन दिल्ली बुलाने के अपने आदेश का अनुपालन कराना मुश्किल हो सकता है क्योंकि राज्य सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए उन्हें कार्यमुक्त करने से इनकार कर सकती है.

दिल्ली में मौजूद आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि ऐसी परिस्थिति में मुख्य सचिव खुद को अजीब स्थिति में पा सकते हैं क्योंकि अगर वह राज्य सरकार द्वारा कार्यमुक्त नहीं किए जाने के आधार पर केंद्रीय प्रति नियुक्ति से इनकार करते हैं तो उनके खिलाफ प्रशासिक कार्रवाई की जा सकती है. उल्लेखनीय है कि केंद्र ने बंद्योपाध्याय को दिल्ली बुलाने का आदेश चक्रवाती तूफान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बैठक को मुख्यमंत्री द्वारा महज 15 मिनट में निपटाने से उत्पन्न विवाद के कुछ घंटों के बाद दिया.

बढ़ाया गया था कार्यकाल

इससे कुछ दिन पहले राज्य में कोविड-19 महामारी से निपटने में मदद के लिए बंद्योपाध्याय का कार्यकाल तीन महीने के लिए बढ़ाने का केंद्रीय आदेश जारी किया गया था. भारत सरकार के पूर्व सचिव जवाहर सरकार ने कहा, 'राज्य सरकार ऐसे तबादलों को नियंत्रित करने वाले अखिल भारतीय सेवा नियमावली को रेखांकित कर विनम्रता से जवाब दे सकती है.'

अखिल भारतीय सेवा के अधिकरियों की प्रतिनियुक्ति के नियम 6 (1) के तहत किसी राज्य के काडर के अधिकारी की प्रति नियुक्ति केंद्र या अन्य राज्य या सार्वजनिक उपक्रम में संबंधित राज्य की सहमति से की जा सकती है. भारतीय प्रशासनिक सेना (काडर) नियम-1954 के तहत, 'कोई असहमति होने पर मामले पर निर्णय केंद्र सरकार और राज्य सरकार कर सकती है या संबंधित राज्यों की सरकारें केंद्र सरकार के फैसले को प्रभावी कर सकती है.'

उन्होंने कहा कि इस बात पर संशय की स्थिति है कि क्या केंद्र सरकार का आदेश उस स्थिति में भी प्रभावी होगा जब पश्चिम बंगाल सरकार से सहमति नहीं ली गई है, हालांकि, केंद्र-राज्य संबंधों में हित टकराने होने पर केंद्र की प्रधानता का ही नियम है. कई सेवानिवृत्त और सेवारत नौकरशाहों ने इस स्थिति को अभूतपूर्व करार दिया है.

चुन सकते हैं ये विकल्प

हालांकि, सरकार और कई अन्य वरिष्ठ नौकरशाहों का आंकलन है कि बंद्योपाध्याय सेवा विस्तार स्वीकार करने के बजाय सेवानिवृत होने का विकल्प चुन सकते हैं. वैसे भी समान्य तौर पर वह 31 मई को सेवानिवृत्त होने वाले थे. वह राज्य सरकार के सलाहकार नियुक्त हो सकते है. उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने शनिवार को अपील की थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बदले की राजनीति खत्म करें और मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को बुलाने का आदेश वापस लें और कोविड-19 संक्रमण के कार्यों को करने दें.

हालांकि, बीजेपी विधायक और पश्चिम बंगाल में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि मुख्य सचिव ने समीक्षा बैठक में प्रोटोकॉल को तोड़ा और संविधान के तहत उनका तबादला उचित है. वहीं जवाहर सरकार ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण या उच्च न्यायालय के जरिए कानूनी रास्ता भी अपना सकती है. हालांकि, माना जा रहा है कि केंद्र ने दोनों मंचों पर कैविएट दाखिल किया है. यह वह तरीका है जिसमें सामान्य समझ महत्व रखती है.

भारतीय ऑडिट और लेखांकन सेवा में पूर्व सचिव स्तर के अधिकारी ने कहा, 'राजनीति से इतर केंद्र का आदेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा क्योंकि इसमें न तो राज्य सरकार की सहमति ली गई और न ही अधिकारी की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर इच्छा पूछी गई.' पश्चिम बंगाल के एक अन्य पूर्व मुख्य सचिव ने कहा, 'किसी नियम का कोई प्रावधान (जो केंद्रीय निर्देशों को लागू करने की अनुमति देता है) नियम का मूल भाग प्रभावी होने पर लागू होता है, जो कि आदेश जारी करने से पहले पूर्व सहमति है. इन प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है. इन नियमों से इतर कोई भी कार्य करने से पहले उसका स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए.'

वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणाभ घोष ने फैसले के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर मुख्यमंत्री तत्काल अधिकारी को कार्यमुक्त नहीं करने का फैसला करती है तो कानूनी जटिलताएं पैदा हो जाएंगी. घोष ने कहा कि मुख्य सचिव सीधे मुख्यमंत्री के नियंत्रण में है.

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