सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की पहचान को जरूरी बताया है कि सरकार के कौन से कदम गैरजरूरी मुफ्तखोरी हैं और कौन सचमुच लोगों के कल्याण के संवैधानिक उद्देश्य को पूरा करते हैं. चुनाव के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा और बाद में उनके अमल से सरकारी खजाने को नुकसान पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट मामले में एक कमिटी बनाने की बात कह चुका है. कोर्ट ने आज सभी पक्षों को इस पर सुझाव देने का एक और मौका देते हुए सुनवाई सोमवार, 22 अगस्त के लिए टाल दी.
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल याचिका में राज्यों पर बकाया लाखों करोड़ रुपए के कर्ज का हवाला दिया गया है. याचिका में कहा गया है कि कर्ज में डूबे राज्य में भी चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल मुफ़्खोरी की नई योजनाओं की घोषणा कर देते हैं. पुराना कर्ज़ चुका नहीं पाते और राज्य के ऊपर फिर से बोझ बढ़ा देते हैं. इस पर रोक नहीं लगाई गई तो देश की स्थिति श्रीलंका जैसी हो जाएगी. मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वित्तीय मामलों की जानकारी रखने वाली संस्थाओं की एक विशेषज्ञ कमिटी के गठन पर ज़ोर दिया था.
AAP ने किया याचिका का विरोध
आम आदमी पार्टी और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) जैसी पार्टियों ने याचिका का विरोध किया है. आज डीएमके की तरफ से पेश वकील पी विल्सन ने कहा, "हम इस याचिका का विरोध करते हैं. मामले में सुनवाई की जरूरत नहीं है." इस पर चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा, "आप याचिका का विरोध कर रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हम कोई आदेश पारित नहीं कर सकते. जिन लोगों को भी याचिका का विरोध करना है या उसके समर्थन में अपनी तरफ से कुछ सुझाव देने हैं, उन्हें शनिवार तक का समय दिया जा रहा है। सोमवार को मामले में सभी पक्षों को विस्तार से सुना जाएगा."
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