बसों की ओवरलोडिंग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई है. याचिका में ओवरलोडिंग से लोगों के जीवन को हो रहे खतरे को आधार बनाया गया है. साथ ही, बसों में सामान की ढुलाई से सरकार को हो रहे राजस्व के नुकसान का भी हवाला दिया गया है.
बसों की छत पर अवैध ढुलाईवकील संगम लाल पांडे की याचिका में कहा गया है कि वह मोटर वेहिकल्स एक्ट, 1988 और सेंट्रल मोटर वेहिकल्स रूल्स, 1989 के पालन की मांग कर रहे हैं. पूरे देश में बेरोकटोक यात्री बसों में अधिक वजन ढोया जा रहा है. बसों में यात्रियों का सामान रखने के लिए तय नियमों के परे जाकर व्यापारिक सामान भी रखा जा रहा है. इसके लिए छतों पर कैरियर लगाए जाते हैं.
जीवन के लिए खतरायाचिकाकर्ता ने बताया है कि निजी बसों में 16 से 18 टन वजन की अनुमति होती है, लेकिन ज्यादा यात्री और सामान को रखकर लगातार 40 से 45 टन तक वजन ढोया जा रहा है. छत पर सामान रखने से बस की ऊंचाई भी बढ़ जाती है. अधिक वजन और ऊंचाई के चलते बस असंतुलित रहती है. ओवरलोडिंग कई बड़ी दुर्घटनाओं की वजह बनता रहा है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) बताता है कि हर साल हजारों लोगों की जान बस की ओवरलोडिंग के चलते जाती है.
राजस्व और पर्यावरण का नुकसानयाचिका में कहा गया है कि बसों में ढोया जाने वाला ज्यादातर व्यापारिक सामान बिना उचित जीएसटी बिल के होता है. 2024 की CAG की रिपोर्ट बताती है कि इससे सरकार को होने वाला राजस्व का नुकसान लगभग 500 करोड़ रुपए हो सकता है. याचिकाकर्ता ने अधिक वजन वाली बसों से होने वाले प्रदूषण का भी उल्लेख किया है. उन्होंने इस बारे में 2022 में जारी IIT दिल्ली की रिपोर्ट का हवाला दिया है. रिपोर्ट के अनुसार ओवरलोड बसें प्रति किलोमीटर ईंधन की 15 से 20 प्रतिशत तक अधिक खपत करती हैं और कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर का अधिक उत्सर्जन करती हैं.
वजन जांचने की बने व्यवस्थायाचिकाकर्ता ने बताया है कि राज्य सरकारों के सिर्फ 5 प्रतिशत बस डिपो में बसों का वजन मापने की व्यवस्था है. एक बार सड़क पर निकल जाने के बाद कभी भी बस का वजन नहीं जांचा जाता. याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट सरकार को हर बस अड्डे और यात्रा के दौरान भी बसों के वजन को जांचने की व्यवस्था बनाने को कहे बसों के ऊपर कैरियर लगा कर माल ढोने पर रोक लगाई जाए।
जीवन रक्षा सरकार का कर्तव्यउत्तराखंड के अल्मोड़ा में नवंबर 2024 में हुई बस पलटने की घटना के अलावा यूपी और महाराष्ट्र में हुई बस दुर्घटनाओं का जिक्र याचिकाकर्ता ने किया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का भी हवाला दिया है, जो लोगों की जीवन की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाना सरकार का दायित्व बताते हैं.